महाराष्ट्र की सियासत में पिछले कुछ सालों काफी कुछ बदल गया है। जो शिवसेना बीजेपी के साथ थी, उसमें दो फाड़ हो चुकी है। जो शरद पवार बीजेपी को चुनौती देने की बात करते थे, उनके भतीजे अजित एनडीए से हाथ मिला चुके हैं। ऐसे में लगातार जमीन पर समीकरण बदले हैं और उन्हीं बदलते समीकरणों ने कई नेताओं की सियासी ताकत को बढ़ाया और घटाया भी है। ऐसे ही एक नाम हैं उद्धव ठाकरे। स्वभाव से शांत, लेकिन पिछले कुछ सालों में अपनी सियासत से राज्य की सीएम कुर्सी तक संभाल चुके हैं।
उद्धव का गिरता जनाधार
इस समय उद्धव अपने सियासी करियर की सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। उनके पास ना शिवसेना है और ना ही तीर-कमान वाला चुनावी चिन्ह। लेकिन अपने बयानों से वे फिर सक्रिय होने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। उसी कड़ी में उनकी तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को सीधी चुनौती दी गई है। एक बयान में उद्धव ठाकरे ने कहा है कि अगर आपको मुझे खत्म करना है, चुनौती देता हूं, करके देखिए, हम भी देखते हैं। अब इस बयान को टिपिकल शिवसेना अंदाज वाला कहा जा सकता है, लेकिन शिवसेना वाली ताकत मिसिंग है।
चुनाव दर चुनाव कैसे बदले समीकरण
ये बात मानी जा सकती है कि शिवसेना को दो फाड़ किया गया, इस वजह से उद्धव की ताकत कम हो गई, लेकिन जब ये पार्टी एकजुट थी, उस समय भी उसकी सियासी ताकत बीजेपी के सामने कही नहीं टिकी। एक जमाने में जरूर शिवसेना को बड़े भाई वाली भूमिका में देखा जाता था, लेकिन समय के साथ और बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद जमीन पर समीकरण बदले। उन समीकरणों ने ही एक तरफ शिवसेना को 1999 में मिली 69 सीटों से 2019 में 56 सीटों पर लाकर खड़ा कर दिया, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी का ग्राफ 56 सीटों से बढ़कर 105 सीटों तक चला गया, यानी कि 49 सीटों की बढ़त।
उद्धव की कमजोरी का बीजेपी ने उठाया फायदा
एक आंकड़ा ये भी बताता है कि शिवसेना समय के साथ अपने इलाकों में भी सिकुड़ गई है। वहीं उस सियासी गिरावट का पूरा फायदा बीजेपी को मिला है। इसी वजह से जब 2014 के चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने अलग-अलग लड़ने का फैसला किया, हैरान करने वाले नतीजे रहे। एक तरफ शिवसेना का ग्राफ 63 सीटों पर रुक गया तो वहीं बीजेपी ने अपने दम पर 122 सीटें जीत लीं। ये पहली बार था जब महाराष्ट्र में बीजेपी ने 100 का आंकड़ा पार किया था।
उद्धव के बयान आक्रमक, बीजेपी को नहीं चिंता
शिवसेना इस बात से जरूर राहत ले सकती है कि लोकसभा चुनावों में उसने अपनी सीटों पर पकड़ अभी भी मजबूत रखी है। इसी वजह से पिछले लोकसभा चुनाव में उसने 18 सीटें जीत ली थीं, इसी तरह 1999 में 15 सीटें भी पार्टी ने अपने नाम की थी। लेकिन अब जब शिवसेवा में दो फाड़ हो चुका है, ये प्रदर्शन दोहराना मुश्किल हो सकता है। इसी वजह से बीजेपी नेता भी उद्धव ठाकरे की चुनौती को गंभीरता से नहीं ले रहे।