राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार की सियासी विरासत को कौन संभालेगा इस पर उनके दोनों पोते आमने-सामने आ गए हैं। पवार ने इस साल भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा। उन्होंने पोते पार्थ पवार को माढ़ा सीट से टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा लेकिन उन्हें शिवसेना के श्रीरंग बारणे ने 2 लाख वोटों से हरा दिया। पार्थ की इस हार के बाद दिवंगत बड़े भाई अप्पा साहेब पवार के पोते रोहित पवार सियासी विरासत के लिए अपना दावा मजबूती के साथ पेश कर रहे हैं।

दोनों पोतों के बीच पहली जंग तब देखने को मिली थी जब एनसीपी प्रमुख ने चुनाव न लड़ने का एलान किया था। इस पर रोहित ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर दादा से उनके फैसले पर फिर से विचार करने के लिए कहा था। हालांकि लोकसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। अब इस साल महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में दोनों पोते अपना-अपना दावा मजबूत करने में लगे हैं।

हफिंगटन पोस्ट के साथ बातचीत में पार्थ ने रोहित के फेसबुक पोस्ट लिखने पर आपत्ति जताई है। पार्थ ने कहा है कि ‘उन्होंने मेरे लिए चुनाव प्रचार किया। अगर उन्हें किस तरह की आपत्ति थी तो अपने दादा या फिर पिता को पत्र लिखने की बजाय फोन पर बातचीत करनी चाहिए थी। ऐसा न करना उनकी मूर्खता को दर्शाता है। उनके ऐसा करने की वजह से लोगों ने गलत धारणा बना ली। क्योंकि लोगों ने महसूस किया कि उन्हें आपत्ति जताने के लिए फोन पर बातचीत करनी चाहिए थी जो आमतौर पर हर शख्स करता है।’

वहीं रोहित ने हफिंगटन पोस्ट को बताया है कि ‘हम सभी एक दूसरे के साथ है। हम कभी भी किसी के खिलाफ सार्वजनिक रूप से नहीं बोलते।’ मालूम हो कि पर्थ के मुकाबले रोहित राजनीति में ज्यादा सक्रिय माने जाते हैं। मई में लोकसभा चुनाव हारने के बाद मीडियो को संबोधित करने के दौरान शरद पवार के साथ रोहित दिखाई दिए थे। वह उनके बगल में ही बैठे थे।

बात करें परिवार के राजनीति के इतिहास की तो अप्पा साहेब पवार परिवार में पहले बड़े नेता बनकर उभरे थे। उन्हें किसानों और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच एक अच्छी छवि के नेता के तौर पर स्वीकार किया जाता था। हालांकि वह ज्यादा लंबे समय तक राजनीति की दुनिया से जुड़े नहीं रहे और उन्होंने अपने भाई शरद पवार को कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन करने की सलाह दी। इसके बाद जब 1999 में सोनिया गांधी से मतभेद हुए तो उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया। उनकी बेटी सुप्रिया सुले दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हैं। और एनसीपी टिकट से कई सालों से सांसद पद पर जीत रही हैं।

वहीं शरद पवार के भाई अनंतराव के बेटे अजीत पवार को भी परिवार की सियासी विरासत संभालने के लिए एक मजबूत नेता के तौर पर देखा जाता रहा है। उन्होंने खुद को एक परिपक्व राजनेता के तौर पर पेश करने में सफल रहे हैं। वह कांग्रेस-एनसीपी सरकार में उप मुख्यमंत्री पद पर भी रह चुके हैं। लेकिन 2017 में रोहित के बारामती के होम टाउन से जिला परिषद के चुनाव जीतने के बाद से उन्हें सियासी विरासत का मजबूत दावेदार माना जा रहा है। रोहित ने बड़ी ही खामोशी से अपने आपको विकल्प के तौर पर पेश किया है।

उन्होंने हफिंगटन पोस्ट से कहा है कि ‘पार्टी के रानजेता सियासी वारिस तय नहीं करते बल्कि यह जनता तय करती है। मेरा मकसद राजनीति में रहते हुए जनता के लिए कुछ कर गुजरने का है। कहा जा रहा है कि वह आगमी चुनाव में राज्य की किसी कठिन सीट को चुनकर चुनावी मैदान में उतरेंगे। वह किसी ऐसी सीट पर चुनाव नहीं जीतना चाहते जहां पर पार्टी पहले से ही मजबूत हो। क्योंकि ऐसा होने पर इस जीत को विरासत के सहारे मिली जीत करार दिया जाएगा।