कहते हैं कि 34 साल के वाममोर्चा शासन के अंत की झलक 2009 के आसपास उप चुनावों के परिणामों में दिखनी शुरू हो गई थी। हाल में हुए सागरदिघी उप चुनाव को भी कुछ ऐसे ही अंदाज में देखा जा रहा है। सागरदिघी अल्पसंख्यक बहुल्य सीट थी। यहां पर ममता बनर्जी के उम्मीदवार को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। खास बात है कि टीएमसी को हार वाम मोर्चा समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार के हाथों मिली। ममता बनर्जी इस हार से इतनी ज्यादा झल्ला गई थीं कि उन्होंने 2024 के आम चुनाव में अकेले उतरने का ऐलान कर दिया। उनका कहना था कि कांग्रेस-वाम उनके खिलाफ हैं।

लेकिन लगता नहीं है कि ममता बनर्जी की मुश्किलें यहीं पर खत्म नहीं होने जा रही हैं। अल्पसंख्यक वोट अरसे से ममता के पाले में जा रहे थे। यही वजह रही कि कांग्रेस और वाम पंथी सिमट गए। सागरदिघी में ममता बनर्जी की ये ताकत दरकती दिखी तो रामनवमी पर हुई हिंसा ने आग में घी डाल दिया। माना जा रहा है कि रामनवमी पर हुए दंगों से अल्पसंख्यक वोट बैंक ममता बनर्जी से दूर खिसक सकता है। उसे लग रहा है कि टीएमसी उसको सुरक्षा दे पाने में नाकाम है। मुस्लिम तबके को वाम मोर्चे का वो शासन भी याद आने लगा है जिसमें दंगे अमूमन नहीं हुआ करते थे।

रामनवमी से एक दिन पहले ममता ने जारी की थी चेतावनी, पर नहीं दिखा असर

खास बात है कि ये दंगे तब हुए जब ममता बनर्जी केंद्र सरकार के खिलाफ धरने पर बैठी थीं। उनकी शिकायत है कि केंद्र न तो उन्हें मन माफिक या कहे कि उसके हिस्से का फंड नहीं दे रहा है और उस पर उनके नेताओं को एक के बाद एक करके जेल में डाला जा रहा है। दंगों के लिए एक तरफ टीएमसी बीजेपी पर दोष मढ़ रही है। उसका कहना है कि बाहर से गुंडे बुलाकर दंगे कराए गए।

वहीं बीजेपी का कहना है कि दंगे टीएमसी ने कराए। ममता का कहना है कि हावड़ा में जान बूझकर एक खास रास्ते का इस्तेमाल करके एक वर्ग विशेष के लोगों को निशाना बनाया गया। उन्होंने रामनवमी से एक दिन पहले चेतावनी भी जारी की थी कि अगर कहीं पर हिंसा हुई तो किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन इसका असर नहीं दिखा।

ममता बनर्जी के प्रशासन पर उठने लगी उंगलियां

दंगों के बाद सबसे ज्यादा निशाने पर ममता बनर्जी का प्रशासन है। लोग बोलने लगे हैं कि आखिरकार पुलिस और प्रशासन कर क्या रहा था। उसकी इंटेलीजेंस कहां थी। दंगाईयों को रोकने के लिए कारगर कदम क्यों नहीं उठाए गए। टीएमसी के एक सीनियर नेता मानते भी हैं कि दंगों के बाद सबसे ज्यादा आलोचना उनकी ही सरकार की हो रही है, क्योंकि लोग मान रहे हैं कि अल्पसंख्यकों को सुरक्षा मुहैया कराने में वो नाकाम रहे। इससे एक खास वोट बैंक उनके हाथ से छिटक भी सकता है।

ममता के मंत्री की कार पर हुआ हमला खतरे की बड़ी घंटी

दंगों के बाद बंगाल के कॉपरेटिव मिनिस्टर अरुप रॉय मौके पर गए तो उनकी कार पर हमला हुआ। ये संकेत दिखाते हैं कि मुस्लिम तबका ममता बनर्जी से संतुष्ट नहीं है। विश्लेषक मानते हैं कि ममता बनर्जी के लिए ये खतरे की बड़ी घंटी है।