अपने ट्विटर परिचय में खुद को ‘राजनीतिक व्यक्ति’ और ‘गौरवान्वित स्वयंसेवक’ बताने वाले त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय ने शुक्रवार को यह टिप्पणी करके विवाद पैदा कर दिया कि मुंबई विस्फोट मामले के दोषी याकूब मेमन को फांसी दिए जाने के बाद उसके जनाजे में शामिल लोगों में से कई ‘संभावित आतंकवादी’ हैं। इस टिप्पणी का तीखा विरोध किया गया।
भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के पूर्व अध्यक्ष 70 साल के रॉय के ट्वीट की तृणमूल कांग्रेस और माकपा ने आलोचना की और याद दिलाया कि वे एक संवैधानिक पद पर बैठे हुए हैं। तृणमूल कांग्रेस नेता व पश्चिम बंगाल के मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने मांग की कि राज्यपाल को हटा दिया जाना चाहिए।
सोशल मीडिया पर भी रॉय की तीखी आलोचना की गई और कहा गया कि रॉय ने एक ट्वीट से संवैधानिक मूल्यों से ‘विश्वासघात’ किया है। मुंबई विस्फोट मामले में मौत की सजा पाने वाले एकमात्र दोषी याकूब को गुरुवार को नागपुर केंद्रीय जेल में फांसी दे दी गई थी और उसका शव मुंबई लाया गया और उसे शाम को बड़ा कब्रिस्तान में दफनाया गया। रॉय ने ट्वीट किया, ‘खुफिया एजंसियों को मेमन के जनाजे में शामिल होने वाले सभी पर (रिश्तेदार और दोस्तों को छोड़कर) नजर रखनी चाहिए। कई संभावित आतंकवादी हैं’।
बाद में रॉय ने सवालों का जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने मेमन के रिश्तेदारों और मित्रों को बाहर रखा था। उन्होंने कहा, ‘अन्य एक ऐसे व्यक्ति को देखने क्यों आए जिसे फांसी दी गई थी। उन्हें जरूर उसके प्रति सहानुभूति होगी’। राज्यपाल ने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘सार्वजनिक हित के मुद्दों को लोगों के ध्यान में लाना मेरा संवैधानिक दायित्व है। इससे राज्यपाल के तौर पर मेरी हैसियत से कोई समझौता नहीं हुआ है’।
रॉय को इसके लिए आलोचना का सामना करना पड़ा कि वे एक विशेष समुदाय को निशाना बनाते प्रतीत हो रहे हंै। रॉय ने अपने ट्वीट का बचाव करते हुए एक और ट्वीट किया, ‘जब मैंने नजर रखने का सुझाव दिया तो मैंने किसी भी समुदाय का उल्लेख नहीं किया’।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘मुझे पक्का विश्वास है कि मुझसे भिन्न मत रखने वाले यह देख रहे हैं कि मैंने वह नहीं कहा जो वे सोच रहे थे। जैसे किसी समुदाय को निशाना बनाना। इसलिए उन्हें आक्रामक तरीके से अपनी बात रखनी थी’। उन्होंने कहा, ‘ओह, क्या आक्रामकता है, मुझे संतोष है लेकिन गंभीरता से विचार करें : 1. क्या मैंने किसी समुदाय की बात की? 2. क्या मैंने कार्रवाई के लिए कहा या केवल नजर रखने के लिए कहा?’
रॉय ने एक और ट्वीट किया, ‘फांसी पर लटकाए गए एक आतंकवादी के लिए ट्विटों की बाढ़ ने मुझे लगभग सबसे अहम ट्वीट करना भुला दिया : सभी को गुरु पूर्णिमा की बधाई’। पिछली मई में राज्यपाल नियुक्त हुए रॉय इससे पहले गुजरात दंगों और ‘लव जेहाद’ पर विवादास्पद ट्वीट कर चुके हैं।
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने रॉय की आलोचना करते हुए कहा कि वे एक संवैधानिक पद पर आसीन हैं और उनकी टिप्पणी संविधान के अनुरूप नहीं है। चटर्जी ने कहा, ‘यदि वह सरकार को कोई सलाह देना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए ट्विटर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। वे राज्य के मुख्यमंत्री से कह सकते थे या उन्हें एक संदेश भेज सकते थे’।
सुब्रत मुखर्जी ने कहा कि रॉय को याद रखना चाहिए कि वे एक संवैधानिक पद पर बैठे हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘उन्हें बिना देरी किए हटा दिया जाना चाहिए। मैं यह देश के एक नागरिक के तौर पर कह रहा हूं’। मुखर्जी की पार्टी के सहयोगी डेरेक ओ ब्रायन ने एक ट्वीट में कहा, ‘एक राज्यपाल को एक राज्यपाल की तरह बोलना चाहिए और एक राज्यपाल की तरह व्यवहार करना चाहिए’।