सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता का मानना है कि ‘टूलकिट’ मामले में दस्तावेज में जो कंटेंट है उससे कहीं से यह नहीं लगता है कि यह हिंसा भड़काने वाला था। जस्टिस गुप्ता ने चिंता जताई की मानहानि, देशद्रोह और UAPA कानूनों का गलत तरीके से इस्तेमाल असहमति की आवाजों को दबाने के लिए किया जा रहा है।
जस्टिस गुप्ता ने एक इंटरव्यू में कहा कि दिल्ली पुलिस ने छुट्टी वाले दिन दिशा रवि को मजिस्ट्रेट के आगे इसलिए पेश किया जिससे कि उन्हें आसानी से दिशा रवि की हिरासत मिल जाए। गुप्ता ने कहा कि अगर जब आप एक व्यक्ति को जेल में बंद करते हैं और कई दिन का समय बीत जाता है तो आप इसकी भरपाई कैसे करेंगे?
दीपक गुप्ता ने कहा कि मीडिया ने पहले ही दिशा रवि को रिया चक्रवर्ती की तरह दोषी साबित कर दिया है। दिशा को एक देशद्रोही बताया जा रहा है। हम असहमत होते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि कोई देशद्रोही होता है। दो देशभक्त लोग सरकार चलाने को लेकर अलग-अलग राय रख सकते हैं।
जस्टिस गुप्ता ने कहा कि लोकतंत्र में असहमति होना जरूरी है। अगर असहमति नहीं है तो लोकतंत्र जिंदा नहीं है। तर्कों के खिलाफ तर्क होने चाहिए, बहस होनी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर समाज रुक जाएगा।
दीपक गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट हर मामले में दखल नहीं दे सकता है। किसी एक को दखल देना होगा और अदालत पहुंचना होगा। दिशा रवि का मामला आप सब लोग जानते हैं लेकिन जब कोई गरीब होता है किसी को परवाह नहीं होती। ऐसा नहीं लगता कि इस मामले में कोर्ट सीधा दखल दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने नागरिकों की गिरफ्तारियों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कई बार तो ऐसे मामलों में गिरफ्तारी की जा रही है जहां इसकी जरूरत ही नहीं है। जस्टिस गुप्ता ने कहा आजकल देखा जा रहा है कि किसी भी मामले में सबसे पहले गिरफ्तारी की जा रही है।
उन्होंने कहा कि आमतौर पर किसी भी मामले में गिरफ्तारी इसलिए की जाती है जब पुलिस को यह लगता है कि आरोपी द्वारा अपराध किया गया है। किसी भी आरोपी को आरोप सिद्ध होने से पहले निर्दोष माना जाता है और यहां तक कि अगर आरोपी पुलिस से सहयोग करता है तो उसे गिरफ्तार करने की इतनी जरूरत नहीं है।