घूसखोरी मामले मे सीबीआइ ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी पार्टी बना लिया है। मामले को पश्चिम बंगाल से बाहर स्थानांतरित कराना के लिए जो याचिका लगाई गई, उसमें जिन तीन लोगों को पार्टी बनाया गया है, उनमें कानून मंत्री मलय घटक और टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी के साथ तीसरा नाम ममता बनर्जी का ही है। सीबीआइ ने इसी के साथ सोमवार को गिरफ्तार किए गए चार आरोपियों को पुलिस हिरासत में देने की मांग भी की है।
हाइकोर्ट के समक्ष इन आरोपियों की हिरासत की मांग करते हुए सीबीआइ ने कहा कि सोमवार को वे यह मांग नहीं रख पाए थे क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मौजूद होने के कारण आरोपियों और समर्थकों ने गदर काट रखी थी। जांच एजेंसी ने कहा कि गिरफ्तारी के बाद सीबीआइ के कोलकाता कार्यालय के बाहर टीएमसी वर्करों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। मुख्यमंत्री भी वहां पहुंचकर धरने पर बैठ गई थीं। उनका आरोप था कि मंत्रियों की गिरफ्तारी में वाजिब प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। धरने के दौरान वे कहती रहीं कि अगर मंत्रियों को पकड़ा है तो सीबीआइ मुझे भी पकड़े।
सीबीआइ ने कहा कि इस अशांति के पीछे पूरी चाल है। उद्देश्य है कि जांच एजेंसी को आतंकित कर दिया जाए ताकि वह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन स्वतंत्र एवं भयमुक्त होकर न कर सके। सोमवार की उन परिस्थितियों में आरोपियों की पुलिस हिरासत की मांग करना विवेकपूर्ण नहीं होता क्योंकि ऐसा करने से कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती थी। इन चार आरोपियों को सात घंटे बाद जमानत तो मिल गई थी लेकिन हाइकोर्ट ने सोमवार की शाम को दायर सीबीआइ याचिका के मद्देनजर उनकी रिहाई स्थगित कर दी थी।
इस बीच टीएमसी ने गिरफ्तारियों की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं क्योंकि यह कार्रवाई बंगाल चुनावों में ममता की जबर्दस्त जीत के बाद की गई है। इन हालत में यह मामला सीधे-सीधे ममता और मोदी के टकराव के रूप में देखा जा रहा है। टीएमसी ने जब मंत्रियों तक की गिरफ्तारी हो गई तो शुभेन्दु अधिकारी की गिरफ्तारी के लिए अनुमति क्यों नहीं दी गई। शुभेन्दु पर भी नारदा मामले में आरोप लग चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि शुभेंदु ने ही ममता बनर्जी को नंदीग्राम सीट से हराया है। शुभेंदु कभी टीएमसी में हुआ करते थे और मुख्यमंत्री के करीबी लोगों में गिने जाते थे। अब वे भाजपा में हैं।