देश में बाघों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है। पर्यावरण मंत्रालय की तमाम कोशिशों के बावजूद बाघों की मौतों के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इस माह के बीते 15 दिनों में ही विभिन्न क्षेत्रों में सात बाघों की मौत हो चुकी है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की रपट में यह जानकारी सामने आई है।
रपट के मुताबिक, इस साल अब तक मृत पाए गए 74 बाघों में से सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश के वन्य क्षेत्रों में सामने आए हैं। इस श्रेणी में महाराष्ट्र दूसरे और कर्नाटक तीसरे स्थान पर रहा है। रपट में कहा गया है कि वर्ष 2012 से 2024 तक मृत पाए गए बाघों की संख्या का जब आकलन किया गया तो इनमें से पचास फीसद बाघ सुरक्षा दायरे के अंदर वाले क्षेत्र में और 42 फीसद इस घेरे के बाहर के क्षेत्र में मृत पाए गए थे।
इसके अलावा बाघों को पकड़ने व उनको बेचने के मामले भी सामने आए हैं। ऐसे मामलों का आंकड़ा सात फीसद के करीब रहा है। बीते चार वर्षों में सबसे अधिक बाघों की मौत के मामले वर्ष 2023 में सामने आए थे।
बाघ-चीतों को एक दायरे में लाने की तैयारी
रपट के मुताबिक, इस साल अब तक 74 बाघों की मौत के मामले सामने आए हैं, जबकि इस वर्ष के अभी छह माह का समय भी पूरा नहीं हुआ है। केंद्र सरकार बाघों के संरक्षण के लिए विशेष परियोजना के तहत इनकी निगरानी करती है और दुनिया भर में चल रहे बाघ संरक्षण कार्यक्रम के तहत दूसरे देशों से बाघ का आदान-प्रदान भी किया जाता है। इन बाघों की निगरानी का जिम्मा पर्यावरण मंत्रालय के पास है। रपट में कहा गया है कि मई में जिन बाघों की मौत हुई है, उनमें एक बाघ सुरक्षा सीमा दायरे के अंदर ही पंच बाघ अभयारण्य में मिला है। जबकि, अन्य सभी बाघ इस दायरे के बाहर मृत पाए गए थे।
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पर्यावरण मंत्रालय अपनी एक परियोजना के तहत देश में बाघ व चीतों को एक दायरे में लाने की तैयारी कर रहा है। मंत्रालय ने इस योजना के लिए दो नए स्थानों की पहचान की है। इनमें गुजरात का बन्नी ग्रासलैंड अभयारण्य और वीरांगना रानी दुर्गावती बाघ अभयारण्य शामिल है। यहां पर पहले से ही तेंदुए भी हैं। इस परियोजना के तहत इन जगहों पर पर्यटक बाघ, चीता और तेंदुए को एक साथ देख सकेंगे।