Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐसे मामले पर हैरानी जताई जिसमें एक महिला को जादू-टोना करने के आरोप में उसको शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। यहां तक की उसको निर्वस्त्र कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह वास्तविकता है कि इस तरह के कृत्य अभी भी 21वीं सदी के जीवन का हिस्सा हैं, जिसने इस कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोर दिया है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ मामले की जांच पर रोक लगाने वाले पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
यह घटना मार्च 2020 में बिहार के चंपारण जिले में हुई थी। यहां 13 लोगों पर शिकायतकर्ता की दादी पर जादू-टोना करने का आरोप लगाते हुए हमला करने का आरोप था। ‘चुड़ैल’ को नंगा करके घुमाने की बात कहते हुए आरोपियों ने उसकी साड़ी फाड़ दी। उन्होंने बीच-बचाव करने आई एक अन्य महिला पर भी हमला किया।
भारतीय दंड संहिता की धारा 341, 323, 354, 354बी, 379, 504, 506, 149 और डायन अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत 13 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया। हालांकि, आरोपियों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगा दी।
शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों की प्रकृति पर आश्चर्य व्यक्त किया। कोर्ट ने कहा कि सम्मान समाज में किसी व्यक्ति के अस्तित्व का मूल है। कोई भी कार्य जो किसी अन्य व्यक्ति या राज्य के द्वारा सम्मान को कम करता है, वह संभवतः भारत के संविधान की भावना के विरुद्ध है, जो यह सुनिश्चित करके सभी व्यक्तियों की सुरक्षा की गारंटी देता है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित की जाए। विस्तार से, यदि किसी व्यक्ति की गरिमा से समझौता किया जाता है, तो उसके मानव अधिकार, जो उसे मनुष्य होने के नाते उपलब्ध हैं और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह के विभिन्न अधिनियमों द्वारा गारंटीकृत हैं, खतरे में पड़ जाते हैं।
हालांकि, हाई कोर्ट में दायर याचिका वापस ले ली गई, जिससे स्थगन आदेश निष्प्रभावी हो गया, तथापि सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों की गंभीरता को देखते हुए मामले को आगे बढ़ाने का फैसला लिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दिए गए स्थगन आदेश को चुनौती न देने के लिए राज्य सरकार की आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि पुलिस एफआईआर दर्ज करने को भी तैयार नहीं थी और शिकायतकर्ता को सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट के पास जाना पड़ा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि दोनों महिलाओं को जो कुछ भी सहना पड़ा। उसको देखते हुए हम और कुछ नहीं कह सकते, लेकिन इस बात पर आश्चर्य व्यक्त कर सकते हैं कि राज्य ने इस कोर्ट के समक्ष अभियुक्तों के पक्ष में स्थगन देने वाले हाई कोर्ट के गैर-बातचीत आदेश पर आपत्ति क्यों नहीं उठाई। किसी मुद्दे पर मुकदमा चलाने का राज्य का निर्णय राज्य के खजाने या अन्यत्र प्राप्त होने वाले लाभ पर निर्भर नहीं होना चाहिए, बल्कि यह अपने लोगों के भीतर कानून के शासन और सभी के लिए न्याय के सम्मान की रक्षा करने की उसकी जिम्मेदारी को भी प्रतिबिंबित करना चाहिए।
कोर्ट ने इस बात पर अफसोस जताया कि समाज के कमजोर वर्गों, अर्थात् महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए विधायी, कार्यकारी और न्यायिक कार्रवाई के माध्यम से उठाए गए विभिन्न उपाय जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच पाए हैं। न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि सभी के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है। इस संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 51ए(ई) का उल्लेख किया गया।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में जादू-टोने से संबंधित 85 मामले दर्ज किए गए। पिछले वर्षों में यह संख्या क्रमशः 68, 88 और 102 थी। कोर्ट ने ऐसे मामलों को “संवैधानिक भावना पर धब्बा” करार दिया।
मोदी सरकार पूर्व CJI चंद्रचूड़ को दे सकती है यह बड़ा अहम पद, अंतिम मुहर लगना बाकी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जादू टोना, जिसका आरोप पीड़ितों में से एक पर है, निश्चित रूप से ऐसी ही एक प्रथा है जिसका परित्याग किया जाना चाहिए। इस तरह के आरोपों का इतिहास बहुत पुराना है और अक्सर इनके शिकार लोगों को दुखद परिणाम भुगतने पड़ते हैं। जादू टोना अंधविश्वास, पितृसत्ता और सामाजिक नियंत्रण से गहराई से जुड़ा हुआ है, इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इस तरह के आरोप अक्सर उन महिलाओं के खिलाफ लगाए जाते हैं जो या तो विधवा या बुजुर्ग होती हैं।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह के आरोप लगाने के कई कारण माने जाते हैं- जाति आधारित भेदभाव, सामाजिक मानदंडों की अवहेलना करने पर प्रतिशोध आदि। इसका प्रभाव अत्यधिक नकारात्मक होता है, जिससे बर्बर व्यवहार, सार्वजनिक अपमान और कभी-कभी मृत्यु भी हो जाती है।
इसी तरह, कोर्ट ने निर्वस्त्र करने (आईपीसी की धारा 354बी) के मामलों की संख्या पर चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने उन अंतर्राष्ट्रीय संधियों और घोषणाओं का भी विस्तार से हवाला दिया, जिनमें जादू-टोने के आरोपों में महिलाओं को निशाना बनाए जाने की निंदा की गई है। कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए ट्रायल कोर्ट को प्रतिदिन सुनवाई करने के निर्देश दिए। आरोपियों को 15 जनवरी 2025 को पेश होने का निर्देश दिया गया।
यह भी पढ़ें-