देश के गद्दारों को गोली मारो… नारे के बाद भी अनुराग ठाकुर और बीजेपी के दूसरे नेता प्रवेश वर्मा पर केस दर्ज न करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के एक मजिस्ट्रेट के फैसले पर तल्ख टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मजिस्ट्रेट ने केस दर्ज करने के लिए जिस सेंक्शन के होने का (आधिकारिक अनुमति) का जिक्र किया था वो कानूनी रूप से सही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट कम्युनिस्ट नेता वृंदा करात की याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच वृंदा करात की स्पेशल लीव पटीशन पर सुनवाई कर रही थी। ये दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर की गई थी जिसमें हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया था। दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और सांसद प्रवेश वर्मा पर केस दर्ज करने की मांग को खारिज कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को जारी किया नोटिस, तीन हफ्ते में देना होगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने स्पेशल लीव पटीशन पर नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है। सभी पक्षों को नोटिस का जवाब तीन हफ्ते के भीतर देना है। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट के फैसले को गलत मानते हुए कहा कि पहली नजर में ये गलत लगता है।

वकील बोले- चुनाव आयोग ने बीजेपी नेताओं पर लगाया था प्रतिबंध पर पुलिस नहीं दर्ज कर रही केस

मामले के मुताबिक अनुराग ठाकुर ने 27 जनवरी 2020 को एक जनसभा के दौरान देश के गद्दारों को गोली मारो…के नारे लगवाए थे। जबकि प्रवेश वर्मा ने भी 27-28 को मीडिया से बातचीत के दौरान अनुराग ठाकुर की कही आपत्तिजनक बात को दोहराया था। वृंदा करात की तरफ से पेश एडवोकेट सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि चुनाव आयोग ने भी दोनों की आपत्तिजनक स्पीच का संज्ञान लेकर उन पर प्रतिबंध लगाया था। उनका कहना था कि देश के गद्दारों को… लेकर दी गई स्पीच उस समय हकीकत में भी बदल गई जब एक युवक ने शाहीन बाग में गोली चला दी। लेकिन मजिस्ट्रेट ने ये कहते हुए केस दर्ज करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि इसके लिए सेंक्शन ली जानी जरूरी है।

करप्शन से जुड़े मामलों में ली जाती है सेंक्शन, आईपीसी से जुड़े केसों में नहीं

एडवोकेट सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि सेंक्शन की जरूरत करप्शन से जुड़े मामलों में होती है। आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज होने वाले केसों के लिए ऐसी किसी अनुमति की जरूरत नहीं होती है। उनका कहना था कि आपत्तिजनक स्पीच को हुए तीन साल बीत चुके हैं लेकिन अभी तक केस दर्ज नहीं किया जा सका है। जबकि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने खुद कहा था कि ऐसे मामलों में पुलिस को स्वतः संज्ञान लेकर केस दर्ज करना चाहिए।