असम के गुवाहाटी जिले के चीफ जस्टिस संदीप मेहता आहत थे। वो क्षुब्ध थे क्योंकि पुलिस ने एक महिला को अरेस्ट करने के बाद केस दर्ज किया। महिला जिसकी गोद में दुधमुंहा बच्चा भी था। पुलिस ने पूरी शिद्दत से कोशिश की कि महिला जेल से बाहर न आ सके। चीफ जस्टिस का कहना था कि उन्होंने अपने 38 साल के करियर में ऐसा कभी नहीं देखा। उन्होंने पुलिस को हिदायत दी कि तत्काल एक विस्तृत रिपोर्ट उन्हें पेश की जाए।
हाईकोर्ट में महिला के भाई ने रिट लगाई थी। उसका कहना था कि उसकी बहन को पुलिस ने गलत तरीके से अरेस्ट करके 6 दिनों तक हिरासत में रखा। बिलासीपारा पुलिस थाने के सब इंस्पेक्टर मनेष ज्योति सैकिया, ऑफिसर इन इंचार्ज ज्योतिरमोय ज्ञान ने 31 मई को अरेस्ट के बाद एक केस दर्ज किया। जबकि बासिर अली नाम के शख्स की हत्या के सिलसिले में दो केस पहले ही दर्ज किए जा चुके थे।
दुधमुंहे बच्चे की मां को पुलिस ने 6 दिनों तक हिरासत में रखा
चीफ जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस देवाशीष बरुआ की बेंच ने कहा कि ऐसा लगता है कि महिला रुकिया खातून को फंसाने के लिए पुलिस ने सारा खेल रचा। पहले उसे अरेस्ट किया गया और फिर पुलिस ने FIR की। बेंच ने सारे मामले को देखने के बाद कहा कि ये कानून के राज के मुताबिक नहीं है। चीफ जस्टिस ने एडिशनल एडवोकेट जनरल से नाराजगी जताते हुए कहा कि ऐसा उन्होंने अपने 38 साल के करियर में कभी भी नहीं देखा। 31 मई को केस दर्ज किया गया। उससे पहले दुधमुंहे बच्चे की मां को 6 दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा गया।
हालांकि एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को आश्वस्त करने की कोशिश की कि नई सरकार बनने के बाद से पहले की तुलना में काफी सुधार हुआ है। डीजीपी ने जिले के एसपी को ट्रांसफऱ कर दिया है। जो पुलिस अधिकारी इस मामले से जुड़े हैं उनके खिलाफ जांच की जा रही है। लेकिन कोर्ट के तेवरों पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। चीफ जस्टिस ने एडवोकेट जनरल को फटकार लगाते हुए कहा कि ये जो कुछ हुआ वो ठीक नहीं था। कोर्ट ने सारे मामले की फैक्चुअल रिपोर्ट तलब करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 21 जून तय की।