अफगानिस्तान में तालिबान के कहर से परेशान लोग दुनिया के अलग-अलग देशों में सिर छिपाने को मजबूर हैं। शरणार्थियों की हालत ये साफ बयां करती है कि क्यों कट्टरता इंसानियत की सबसे बड़ी दुश्मन है। शरणार्थी अपनी आपबीती बताते रो पड़ते हैं कि कैसे तालिबान ने उनके अपनों को उनकी आँखों के सामने गोली से छलनी कर दिया। महिलाएं जहां अपनी आपबीती में तालिबान द्वारा लड़कियों के लिए स्कूलों को बंद कराने और काम पर जाने से रोकने को गिनाती हैं तो वहीं तालिबान के राज में कारोबार और रोजगार पर कैसी मार पड़ती है इसके बारे में बताते लोगों के आँखों से आंसू बहने लगते हैं।
ऐसे ही करीब 15 हजार लोग कुछ साल पहले अफगानिस्तान छोड़ दिल्ली भाग आए और यहां शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। बीते कुछ वक्त में अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते कदमों ने शरणार्थियों के संकट के खतरे की घंटी बजा दी है। तालिबान से लड़ाई में थक हार के अमेरिका ने भी अफगानिस्तान से अपनी पूरी सेना वापिस बुलाने का कदम उठाया है। जिसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि तालिबान का देश में दबदबा और भी मजबूत हो जाएगा।
दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन में रहने वाली, शरणार्थी परवीन अपनी कहानी बताती हैं कि कैसे अपनी बच्चियों को तालिबान से बचाने के लिए वे दिल्ली चली आई थीं। ऐसे ही रमजिया अजीजी बताती हैं कि कैसे उनके नाना को उनकी आँखों के सामने तालिबान ने मारा था। उन्होंने कहा, ‘आतंकियों ने मेरे नाना की छाती में पूरी बंदूक डाल दी थी।’
शरणार्थी बताते हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव से वे इसलिए भी चिंतित हैं क्योंकि उनके कई रिश्तेदार अभी भी काबुल में हैं जहां तालिबान अपने कदम बढ़ा रहा है। तालिबान धीरे-धीरे बड़े-बड़े शहरों पर कब्जा कर रहा है। हालांकि शरणार्थियों को उम्मीद है कि अफगानिस्तान में तालिबान के खात्मे के बाद वे अपने मुल्क जरूर लौटेंगे।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतारेस का कहना है कि अफगानिस्तान में बढ़ते संघर्ष के कारण इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक करीब 3,60,000 लोग विस्थापित होने के लिए मजबूर हुए हैं। उन्होंने लश्करगाह में लोगों की सुरक्षा पर गहरी चिंता जतायी जहां तालिबान के साथ लड़ाई के कारण हजारों लोग फंसे हो सकते हैं।