दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 के सिख-विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में आरोपियों को बरी करने के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया है। अदालत ने अपील दायर करने में सरकार की तरफ से हुई लगभग 28 साल की देरी को माफ करने से इनकार करते हुए कहा है कि इसके लिए कोई उचित कारण नहीं बताया गया है। आरोपियों को दिल्ली की ही एक निचली अदालत ने 1995 में बरी कर दिया था।

सरकार ने कहा कि दंगों के मामलों को देखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक SIT का गठन किया गया था। दो सदस्यीय स्पेशल टीम ने 2019 में सिफारिश की थी कि आरोपियों को बरी करने के 1995 के आदेश के खिलाफ अपील दायर की जा सकती है। सरकार का कहना था कि साक्ष्यों के अभाव में मामले को बंद कर दिया गया था। लेकिन अब 27 साल 335 दिन की देरी की माफी के साथ फिर से अपील करने की अनुमति मांगी गई है। सरकार ने कहा कि कोविड महामारी के कारण तेजी से अपील को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका, जिससे और देरी हुई।

हाईकोर्ट बोला- देरी की और वजह भी बेसिरपैर की बता रहे

अब 27 साल 335 दिन की देरी की माफी के साथ फिर से अपील करने की अनुमति मांगी गई है।

हाईकोर्ट ने कहा कि देरी को माफ करने के लिए आवेदन में कोई ठोस आधार नहीं दिया गया है। अदालत ने अपील को खारिज कर दिया। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने कहा कि लगभग 28 वर्षों की देरी का कोई भी कारण नहीं बताया गया है।

तथ्यात्मक रूप से एसआईटी ने रिपोर्ट 15 अप्रैल 2019 को दी थी। लेकिन उसके बाद भी लगभग चार साल की देरी हुई है, जिसके लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया गया। बेंच ने कहा कि अदालत ने हाल में तीन एसएलपी (विशेष अनुमति याचिकाएं) खारिज की हैं। जबकि उनमें देरी 1000 दिन से कम थी। अदालत ने कहा कि सरकार ने देरी के लिए जो आधार बताया है, उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता।