देश के पहले स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस को भारतीय वायुसेना में शामिल कर लिया गया है। तेजस विमान 33 साल की लंबी प्रक्रिया के बाद एयरफॉर्स में शामिल हुआ है। 1984 में पहली बार स्वदेशी विमान बनाने का प्लान बनाया गया था। इसके बाद अब जाकर दो विमानों के रूप में पहली स्कवाड्रन को शामिल किया गया है। कई आधुनिक सुविधाओं से लैस यह विमान मिग-21 की जगह लेगा। इस विमान के जरिए उम्मीद की जा रही है कि भारत लड़ाकू विमानों के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहेगा।
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हालांकि तेजस की क्षमता को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं। इसी साल राजस्थान के पोकरण में आयरन फीस्ट-2016 अभ्यास के दौरान तेजस से प्रक्षेपित लेजर गाइडेड बम (एलजीबी) लक्ष्य पर निशाना लगाने से चूक गया था। हालांकि वायुसेना ने इसे विफलता नहीं माना था। वायुसेना का कहना था कि तेजस से प्रक्षेपित एलजीबी निशाने से चूक गया था। बम में कोई गड़बड़ी थी। पायलट अथवा विमान की कोई चूक नहीं थी। प्रक्षेपास्त्रों का लक्ष्य को भेद देना बहुत सामान्य (नियमित) है। उन्होंने कहा कि प्रक्षेपास्त्रों की लक्ष्यों को भेदने की सटीकता अलग होती है और सामान्य तौर पर यह 90-93 फीसदी होती है।
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एक अन्य अधिकारी ने कहा था कि यह लक्ष्य के बहुत निकट था। मौसम अनुकूल नहीं था और मिसाइल को प्रक्षेपित किये जाने से कुछ सेकंड पहले पायलट ने लक्ष्य नहीं देखा था। गौरतलब है कि अभी दो तेजस विमानों को शामिल किया गया है। आने वाले समय में इनकी संख्या बढ़ाई जाएगी। तेजस के प्रोजेक्ट पर 33 हजार करोड़ रुपये का खर्चा आया है। इस तरह से एक विमान की लागत 220-250 करोड़ रुपये के बीच है।
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