जब राजनेता जवाबदेही से डरते हैं, तो उनसे जवाब जबर्दस्ती करके मांगे जाते हैं। कुछ ऐसा ही हो रहा है नरेंद्र मोदी के साथ। मणिपुर में पिछले तीन महीनों से गृहयुद्ध चल रहा है और इस पर आज तक देश के प्रधानमंत्री ने एक छोटा-सा वक्तव्य देने के अलावा कुछ नहीं कहा है। वक्तव्य दिया भी तो संसद के बाहर, अंदर नहीं। बोले सिर्फ इसलिए कि पूरा देश शर्मिंदा हुआ था उस दिन, जब उन दो औरतों का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उनके कपड़े उतार कर उनको बेइज्जत करते दिख रहे हैं हथियारबंद दरिंदे।

क्या तीन महीने से जारी हिंसा से प्रधानमंत्री मोदी अनजान थे?

वीडियो वायरल होने के बाद मोदीजी ने माना कि उनका ‘हृदय पीड़ा और क्रोध’ से भर गया है। इन शब्दों को कहने के फौरन बाद उन्होंने मणिपुर की तुलना राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं के साथ हुई हिंसा से की। याद रखिए कि इन दोनों राज्यों में शासन विपक्षी दलों का है। प्रधानमंत्री का इशारा साफ था और उनके वक्तव्य के फौरन बाद भारतीय जनता पार्टी के आला नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि संसद में चर्चा उन सारे राज्यों को लेकर होनी चाहिए, जहां महिलाओं के साथ हिंसा हुई है। प्रधानमंत्री क्या अभी तक जानते नहीं हैं कि मणिपुर में गृहयुद्ध चल रहा है पिछले तीन महीनों से? माना कि इस दौरान उनकी कई विदेश यात्राएं हुई हैं, लेकिन क्या गृहमंत्री ने उनको सारी बात समझाई नहीं होगी?

पार्टी ने अपने ही विधायक को मुसीबत में बेसहारा छोड़ा

इस गृहयुद्ध से पीड़ित लोग दिल्ली तक आ गए हैं और उनमें एक अति-पीड़ित व्यक्ति भी है, जो तीन बार विधायक रहा है और जो भारतीय जनता पार्टी का अपना विधायक है। वंग्जगीन वालते। आज वे न चल सकते हैं, न बोल सकते हैं और न अपने आप खाना खा सकते हैं। इसलिए कि वे मैतेई भीड़ का शिकार हुए। इस हमले से पहले वे मणिपुर के मुख्यमंत्री के करीबी सलाहकार थे। इंफल में मई के पहले हफ्ते में उनकी गाड़ी को भीड़ ने रोक कर उनको और उनके कुकी चालक को इतनी बुरी तरह मारा कि अपाहिज बना दिया।

इस हमले के दो दिन बाद चालक की मौत हो गई थी। विधायक वालते को हवाई एंबुलेंस से दिल्ली लाया गया, बेहोशी की हालत में। कई हफ्ते इलाज चला, लेकिन जब डाक्टरों को लगा कि अब कुछ और नहीं हो सकता, तो उनको घर भेज दिया। आज पड़े हैं एक छोटे से कमरे में बेहाल और बेबस। न भारत सरकार की तरफ से कोई मदद मिली है और न मणिपुर सरकार से। इतनी भी मदद नहीं कि उनको मणिपुर भवन में रहने का इंतजाम किया जाए।

प्रधानमंत्री जी, क्या आपसे आप ही की पार्टी के इस बेहाल विधायक के बारे में सवाल करना गलत है? क्या मणिपुर में चल रहे गृहयुद्ध के बारे में आपसे सवाल पूछना गलत है? क्या देश सुरक्षित रह सकता है, अगर हमारे पूर्वोत्तर राज्यों में इस तरह आग फैलती रहेगी? क्या आपसे पूछना गलत है कि आपने संसद में अभी तक मणिपुर के बारे में बोलने से इनकार क्यों किया, इस हद तक कि अब अगले सप्ताह अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है आपकी सरकार के खिलाफ?

गृहमंत्री के दो बार मणिपुर दौरे का क्या निकला नतीजा

समझ में नहीं आता कि मोदी संसद के अंदर बोलने से क्यों डरते हैं। इतने अच्छे वक्ता हैं कि जब आम सभाओं में भाषण देते हैं तो उनके विरोधी भी हैरान रह जाते हैं, तो संसद में बोलने से इतनी चिंता क्यों? इससे भी महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री जानते नहीं हैं कि जब देश के किसी भी हिस्से में हिंसा या अशांति का माहौल पैदा होता है, तो उनकी ‘रहबरी का सवाल है’? गृहमंत्री के हवाले इस दायित्व को सौंपने से बात नहीं बनती वैसे भी, मणिपुर को लेकर खास तौर पर नहीं, क्योंकि गृहमंत्री मणिपुर का दौरा कर चुके हैं दो बार और वहां से लौटने के बाद इतना भी नहीं किया कि मुख्यमंत्री को हटा कर शासन को अपने हाथों में ले लिया जाए।

मणिपुर के लोग खुल कर कहते आए हैं कई दिनों से कि उनको मुख्यमंत्री पर विश्वास नहीं रहा है, तो अभी तक क्यों नहीं हटाए गए हैं? सवाल और भी हैं, जो प्रधानमंत्री से पूछे जा रहे हैं और जिनको पूछना बहुत जरूरी हो गया है। पिछले सप्ताह जब मणिपुर में चल रही अराजकता को लेकर सारा देश परेशान हो रहा था, तो क्या अच्छा लगा कि आप प्रगति मैदान में नई इमारत के उद्घाटन में व्यस्त रहे और इसके बाद चले गए राजस्थान, चुनावी सभा को संबोधित करने?

माना कि आपकी विदेश यात्राएं अहम थीं और उनको आप टाल नहीं सकते थे मणिपुर में हिंसा शुरू होने के बाद, लेकिन क्या इमारतों के उद्घाटन करना जरूरी था? क्या चुनाव प्रचार जरूरी था? क्या आपकी शान नहीं बढ़ती अगर आप इन चीजों में व्यस्त होने के बजाय इंफल के लिए रवाना होते, ताकि वहां के पीड़ितों को लगे कि उनकी चिंता आपको है?

मोरबी में पुल टूटा तो आप वहां फौरन गए लोगों का दुख बाटने। बालासोर में रेल दुर्घटना हुई तो आप वहां भी गए जायजा लेने और राहत के काम देखने। तो मणिपुर जाने से क्यों परहेज है आपको? यह ऐसा राज्य है, जहां चीन दशकों से अशांति फैलाने की कोशिश करता रहा है, ऐसा राज्य जो देश की अशांत सीमा पर है, क्या आपका दायित्व नहीं है वहां जाकर लोगों को ढांढस बंधाने का? फिर वही बात कि जब राजनेता भूल जाते हैं अपनी जवाबदेही तो उनसे जबर्दस्ती जवाब मांगे जाते हैं। जवाब दीजिए प्रधानमंत्री, इन तमाम सवालों के, वरना आपके नेतृत्व पर लोग शक करने लगेंगे।