तमिलनाडु में स्कूल एजुकेशन के डायरेक्टर ने एक सर्कुलर जारी करते हुए अधिकारियों से कहा कि वो छात्रों की कलाई पर बैंड पहनने की प्रथा पर रोक लगाएं, जिससे उनकी जाति की पहचान होती है। हालांकिे इस रिपोर्ट के सामने आने के कुछ दिनों बाद प्रदेश के स्कूल एजुकेशन मिनिस्टर ने यह कहते हुए अधिसूचना रद्द कर दी कि स्कूलों में ऐसी कोई प्रथा मौजूद नहीं है। शुक्रवार (16 अगस्त, 2019) को जारी अपने बयान में के ए सेनगोट्टैयन ने कहा कि स्कूलों में मौजूदा मानदंड जारी रहेंगे। उन्होंने कहा, ‘अपनी जातिगत पहचान के लिए स्कूलों में कलाई बैंड पहनने वाले छात्रों का ऐसा चलन नहीं है। वर्तमान में स्कूलों में जो भी मानदंड हैं, वे जारी रहेंगे, कोई नए नियम नहीं हैं।’
मंत्री ने आगे कहा कि सर्कुलर एक समूह (2018 बैच के ट्रेनी आईएएस अधिकारियों) द्वारा प्रतिनिधित्व पर आधारित था। उन्होंने कहा, ‘उसके आधार पर, यह सर्कुलर संबंधित अधिकारी द्वारा मुझसे सलाह किए बिना जारी किया गया था। यही अब इस भ्रम का कारण है। अगर किसी स्कूल में ऐसी प्रथाएं मौजूद हैं, तो हम निश्चित रूप से कार्रवाई करेंगे। मुझे अब तमिलनाडु के स्कूलों में ऐसी किसी भी प्रथा की जानकारी नहीं है।’
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सेनगोट्टैयन का बयान ऐसे समय में सामने आया है जब दो दिन पहले प्रदेश भाजपा महासचिव एच राजा ने सर्कुलर को ‘हिंदू विरोधी कृत्य’ करार दिया था। उन्होंने AIADMK के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से सर्कुलर वापस लेने की मांग की है। राजा ने स्कूल ऑफ एजुकेशन के डायरेक्टर से यह भी पूछा कि क्या उन्होंने अन्य धर्मों के प्रतीकों पर भी प्रतिबंध लगाने की हिम्मत की है।
दरअसल सर्कुलर 31 जुलाई को जारी हुआ, जिसमें सभी जिला शिक्षा अधिकारियों से उनके जिले में ऐसे स्कूलों की पहचान करने के लिए कहा जिसमें इस तरह के भेदभाव किया जाता है और ऐसे स्कूल संचालकों के प्रमुखों को निर्देश जारी करें कि वो ऐसी प्रथा पर तुरंत रोक लगाएं।
इसके अलावा उन लोगों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करने को कहा जो ऐसी प्रथाओं को लिए जिम्मेदार हैं। सर्कुलर कहता है कि कलाई बैंड लाल, पीले, हरे और केसर के विभिन्न रंगों में होते हैं ताकि उनकी जाति की पहचान का संकेत दिया जा सके।