मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने के मामले को सर्वोच्च न्यायालय ने जिस संजीदगी से लिया है, उससे एक बार फिर भरोसा बना है कि न्यायपालिका की अंतरात्मा सजग है। प्रधान न्यायाधीश और दो अन्य न्यायाधीशों की पीठ ने कड़े शब्दों में केंद्र और राज्य सरकारों को चेतावनी दी है। यहां तक कह दिया कि हम सरकार को कार्रवाई करने का थोड़ा वक्त देते हैं, वरना हम खुद कार्रवाई करेंगे। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सांप्रदायिक टकराव के क्षेत्र में महिलाओं को वस्तु की तरह इस्तेमाल करना संविधान के खिलाफ है।

सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में सरकार की तरफ से की जा रही कार्रवाइयों की सूचना देते रहने को कहा है। मणिपुर मामले का अदालत ने स्वत: संज्ञान लिया था। अब देखना है कि केंद्र और राज्य सरकारों की उदासीनता किस रूप में भंग होती है। मणिपुर में हिंसक टकराव को ढाई महीने से ऊपर हो गए, मगर न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार की तरफ से ऐसा कोई कदम उठाया जाता दिखा, जिससे लगे कि वे इस घटना को रोकने को लेकर गंभीर हैं।

जिन दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने का वीडियो प्रसारित हुआ, उसे हुए भी करीब ढाई महीने हो गए। हिंसा भड़कने के दूसरे दिन की ही यह घटना बताई जा रही है, मगर उसका वीडियो प्रसारित होने के बाद जब तीखी आलोचना शुरू हुई तभी सरकारों की कान पर जूं रेंगी।

जिन दोनों महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उन्हें निर्वस्त्र घुमाते हुए बेशर्मी से छेड़खानी की जाती रही, उनका कहना है कि पुलिस ने ही उन्हें भीड़ के बीच छोड़ दिया था। दरअसल, हथियारबंद करीब एक हजार लोगों की भीड़ उन महिलाओं के गांव में घुस आई थी और लोगों को मारना और घरों में आग लगाना शुरू कर दिया था। तब पुलिस उन महिलाओं को अपनी गाड़ी में बिठा कर थाने ले जा रही थी। मगर रास्ते में जब भीड़ से सामना हुआ तो पुलिस ने उन्हें वहीं छोड़ दिया।

यानी यह घटना पुलिस की जानकारी में थी। मगर ताज्जुब है कि उस पर पुलिस ने तभी कोई कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा और वीडियो प्रसारित होने के बाद उसकी प्राथमिकी दर्ज की गई और कथित आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। सबसे हैरान करने वाला बयान तो वहां के मुख्यमंत्री का था, जिन्होंने घटना का वीडियो सामने आने पर कहा कि ऐसी घटनाएं तो यहां होती रहती हैं। सैकड़ों घटनाएं हो चुकी हैं, उनकी जांच चल रही है। यानी उनकी नजर में यह मामूली घटना थी। ऐसे में प्रधान न्यायाधीश की नाराजगी समझी जा सकती है।

केंद्र सरकार की तरफ से भी इस मामले में लगभग चुप्पी ही देखी गई। गृहमंत्री एक बार जरूर वहां गए थे, मगर कोई ऐसा सख्त कदम नहीं उठाया जा सका या हिंसा पर उतारू दोनों गुटों के बीच समझौते का कोई प्रयास नहीं किया गया, जिससे घटना पर काबू पाया जा सके। वहां के आयुधकोष से करीब चार हजार स्वचालित हथियार और भारी मात्रा में गोली-बारूद लूट लिया गया और वहां के सुरक्षाबल हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। मणिपुर हिंसा से जुड़े बहुत सारे सवाल हैं, जिनका जवाब सरकारों को देना है। ऐसे में प्रधान न्यायाधीश की सख्ती से उम्मीद बनी है कि अब वहां के लोगों के नारकीय बन चुके जीवन में कुछ सुधार आ पाएगा।