शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में उत्तरप्रदेश सरकार की अपील खारिज होने के बाद राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव(ACS) और वित्त सचिव के ऊपर गिरफ़्तारी की तलवार लटकने लगी है। शनिवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उत्तरप्रदेश सरकार के अधिकारी को दंभी करार देते हुए कहा कि आपके मन में अदालत के लिए कोई सम्मान नहीं है।
शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देते हुए उत्तरप्रदेश सरकार की तरफ से दायर की गई याचिका पर सुनवाई की गई। याचिका में आदेश के आंशिक रूप से पालन और देरी के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा यूपी के वित्त सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव के खिलाफ जारी जमानती वारंट को रद्द करने की अपील की गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वसूली अमीन की सेवा नियमित करने और सैलरी बढ़ोतरी के भुगतान को रोके जाने को लेकर यह आदेश दिया था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में आदेश देते हुए कहा था कि चूंकि अधिकारियों ने जानबूझकर उच्च न्यायालय को गुमराह किया है और याचिकाकर्ता को बकाया वेतन नहीं देकर अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा दिए गए अंडरटेकिंग का उल्लंघन किया है। इसलिए यह न्यायालय प्रतिवादियों के निंदनीय आचरण के बारे में व्यथा और निराशा प्रकट करता है। साथ ही कोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य सचिव और वित्त सचिव को 15 नवंबर तक अदालत में पेश होने का आदेश देते हुए जमानती वारंट जारी किया।
इसी से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों से कहा कि आप इससे ज्यादा सजा के लायक हैं। साथ ही पीठ ने कहा कि आप इस मामले में यहां क्या बहस कर रहे हैं। उच्च न्यायालय को अब तक गिरफ्तारी का आदेश देना चाहिए था। हमें लगता है कि इस मामले में और अधिक कड़ी सजा देने की आवश्यकता थी। उच्च न्यायालय आपके साथ ज्यादा नरमी से पेश आ रहा है। आप अपने आचरण को देखें, आपने एक कर्मचारी के वेतन को रोका हुआ है। आपने कोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए कुछ नहीं किया। उच्च न्यायालय आप पर बहुत दयालु रहा है आपके पास अदालत के लिए कोई सम्मान नहीं है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कह दिया अतिरिक्त मुख्य सचिव बहुत अहंकारी लगते हैं।
वहीं अधिकारियों की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि याचिकाकर्ता भुवनेश्वर प्रसाद तिवारी की सेवा नियमित कर दी गई है और उनसे पहले नियमित किए गए उनके जूनियरों को हटा दिया गया है। अब सिर्फ बचे हुए वेतन का ही मुद्दा रहा है। इसपर कोर्ट ने कहा कि ये सब रिकॉर्ड के मामले हैं और हम कुछ भी नहीं कह रहे हैं जो रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है। अदालत के आदेश के बावजूद अतिरिक्त मुख्य सचिव कहते हैं कि मैं उम्र में छूट का लाभ नहीं दूंगा। पीठ ने कहा कि अधिकारियों ने इसे हरसंभव तरीके से रोकने की कोशिश की। इसके बाद कोर्ट ने यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी कि आप गिरफ्तार होने के बाद उच्च न्यायालय के सामने इस दलील को रखें।