सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) विनय कुमार सक्सेना को यमुना में प्रदूषण के मुद्दे के समाधान के लिए उच्च स्तरीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इस मामले की सुनवाई CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा कर रहे थे।
आप सरकार ने बुधवार (5 जुलाई) ने एनजीटी के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। आप की ओर से कहा गया था कि एलजी को उनके अपने क्षेत्र के बाहर अधिकार नहीं दिया जा सकता है। एनजीटी का यह आदेश दिल्ली में शासन की संवैधानिक योजना के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 2018 और 2023 के आदेशों का उल्लंघन करता है।
सरकार ने शीर्ष अदालत से एनजीटी के आदेश को रद्द करने का अनुरोध करते हुए कहा कि ये शक्तियां विशेष रूप से दिल्ली की निर्वाचित सरकार के पास हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
लाइव लॉं की खबर के मुताबिक CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि एनजीटी के निर्देश उस हद तक रोक रहेगी, जहां तक एलजी को प्रमुख बनने के लिए कहा गया है। हम पूरे आदेश पर रोक नहीं लगा रहे हैं।
संविधान का उल्लंघन है नियुक्ति
आम आदमी पार्टी की ओर से दायर याचिका में ज़ोर देकर कहा गया था कि स्थानीय शासन से संबंधित मामलों की कार्यकारी शक्ति संविधान के तहत विशेष रूप से राज्य सरकार (जीएनसीटीडी) के पास है, सिवाय एक स्पष्ट संसदीय कानून द्वारा सीमित सीमा के। फिर भी एनजीटी ने ऐसा फैसला सुनाया था। इस ही मामले में एडवोकेट शादान फरासत के माध्यम से नजीटी अधिनियम की धारा 22 के तहत अपील दायर की गई है, जिसमें तर्क दिया गया था कि पारित आदेश में उच्च स्तरीय समिति के प्रमुख के रूप में एलजी की नियुक्ति संविधान का उल्लंघन है।