उच्चतम न्यायालय ने एक बार फिर ट्राइब्यूनल में भर्तियों को लेकर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि देश में मनमाने तरीके से नियुक्ति नहीं हो सकती है। अदालत ने सरकार से दो हफ्तों में सभी नियुक्तियों से जुड़ी जानकारी मांगी है, साथ ही सरकार के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस चलाने की चेतावनी भी दी है।

देश में ट्रिब्यूनल के पदों पर नियुक्तियों के मसले पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि जब कमेटी द्वारा कैंडिडेट के नामों को सुझाया गया है, तब अबतक इन पदों पर नियुक्ति क्यों नहीं हो पाई है। चीफ जस्टिस एनवी. रमना ने सुनवाई के दौरान कहा, “मैंने एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) की नियुक्तियां देखी हैं। इसमें सरकार द्वारा चेरी पिक की नीति से नियुक्ति की गई है। यह किस तरह का चयन है? और ऐसा ही चयन आईटीएटी (आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण) में भी किया गया है।

मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा, “जिस तरह से निर्णय लिए जा रहे हैं, उससे हम बहुत नाखुश हैं।” उन्होंने कहा, “मैं भी एनसीएलटी चयन समिति का हिस्सा हूं। हमने 544 लोगों का इंटरव्यू लिया … जिनमें से हमने 11 न्यायिक सदस्यों और 10 तकनीकी सदस्यों के नाम दिए। इन सभी सिफारिशों में से केवल कुछ ही सरकार द्वारा नियुक्त किए गए थे। बाकी नाम वेट लिस्ट में चले गए।”

केंद्र सरकार पर तीखी टिप्पणी करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सरकार का दृष्टिकोण “बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।” उन्होंने कहा, “हमने इंटरव्यू करने के लिए पूरे देश की यात्रा की। हमने अपना समय बर्बाद किया? हमने कोविड के बीच यात्रा की क्योंकि सरकार ने हमसे इंटरव्यू करने का अनुरोध किया था।”

इसपर सरकार की ओर से जवाब आया कि केंद्र सरकार को अपने अनुसार नियुक्ति करने का अधिकार है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जवाब देते हुए कहा, “सरकार कुछ सिफारिशों का पालन करने की हकदार है।”

इसपर न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने पूछा कि अगर सरकार को ही आखिरी फैसला लेना है तो चयन समिति (जिसकी रचना में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल हैं) की क्या जरूरत है।” चीफ जस्टिस ने कहा कि हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, जो संविधान के मुताबिक चलता है। ऐसे में आप इस तरह का जवाब नहीं दे सकते हैं।

कोर्ट ने कहा, “”एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) और एनसीएलएटी (नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल) जैसे महत्वपूर्ण ट्रिब्यूनल में रिक्तियां…अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। सशस्त्र बलों और उपभोक्ता ट्रिब्यूनल में रिक्तियां मामलों के समाधान में देरी का कारण बन रही हैं।”