सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें कोविड-19 महामारी के बीच वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए सभी पटाखों की बिक्री, खरीद और उपयोग पर बैन लगाया गया था।
हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि प्रतिबंधित पटाखों और संबंधित वस्तुओं का आयात नहीं किया जाए। इस पीठ में न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और अजय रस्तोगी शामिल थे।
बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा काली पूजा, दिवाली और छठ के दौरान रात 8 से 10 बजे के बीच केवल हरे पटाखे फोड़ने की अनुमति दी गई थी, इसके कुछ ही दिनों बाद ही, कलकत्ता हाई कोर्ट ने 31 दिसंबर तक हरे पटाखे सहित पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। हालांकि ये प्रतिबंध मोम और तेल से जलने वाले दीपकों पर मान्य नहीं था।
आदेश सुनाने से पहले, कोर्ट ने यह भी कहा कि हरे पटाखों को सामान्य, प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों से अलग करना बहुत मुश्किल होगा। बता दें कि दिवाली आने में अब थोड़ा ही समय रह गया है। ऐसे में पटाखा निर्माताओं ने प्रोडक्शन तेज कर दिया है। उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर दिल्ली समेत कई सरकारों ने पटाखों के बनाने पर प्रतिबंध जरूर लगाया हुआ है, लेकिन कई निर्माता अब भी उसको बनाने में जुटे हैं।
इतना ही नहीं हरित पटाखों को बनाने की आड़ में कई निर्माता प्रतिबंधित पदार्थों का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। हालांकि कोविड महामारी और प्रदूषण की समस्या को देखते हुए पटाखों को पूरी तरह से बंद करने की मांग की जा रही है।
बिना शोर वाले और गैरहानिकारक पटाखों से उत्सव मनाने के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ी है। तमाम लोग पटाखों के बजाए दूसरे तरह की चीजों से जश्न मनाने में रुचि ले रहे हैं। उच्चतम न्यायालय भी इसको प्रोत्साहित करने की बात कह रहा है।
हालांकि तमाम पटाखा निर्माता अपनी रोजी-रोटी की बात कहकर इस काम को बंद करने से इंकार कर रहे हैं। इसके चलते कई बार गैरकानूनी रूप से प्रतिबंधित सामग्री इस्तेमाल करने पर खतरे भी हुए हैं और जानें भी गई हैं।