Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया है। जिसमें जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ आरोपों से संबंधित इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट की मांग की गई थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को उक्त रिपोर्ट भेजने के लिए लिखे गए पत्र का खुलासा करने से भी इनकार कर दिया।
आरटीआई आवेदन में इस मामले में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र की भी जानकारी मांगी गई थी। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने स्पष्ट रूप से संचार की गोपनीयता का हवाला दिया और आरटीआई आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इससे संसदीय विशेषाधिकार का भी उल्लंघन हो सकता है।
इस महीने की शुरुआत में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर समिति की रिपोर्ट और न्यायमूर्ति वर्मा से प्राप्त जवाब साझा किया था। आंतरिक प्रक्रिया के अनुसार, न्यायाधीश को इस्तीफा देने की सलाह का पालन न किए जाने पर प्रधान न्यायाधीश राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को महाभियोग के लिए पत्र लिखते हैं।
अमृतपाल सिंह खालसा द्वारा 9 मई को प्रस्तुत आवेदन को सुप्रीम कोर्ट के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (CPIO) ने प्रमुख कानूनी छूटों का हवाला देते हुए खारिज कर दिया। 21 मई को दिए गए जवाब में, CPIO ने CPIO, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल और RTI अधिनियम की धारा 8(1)(e) और 11(1) में सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले का हवाला दिया।
धारा 8(1)(ई) प्रत्ययी क्षमता में रखी गई जानकारी को तब तक छूट देती है जब तक कि कोई बड़ा सार्वजनिक हित स्थापित न हो जाए, जबकि धारा 11 तीसरे पक्ष की जानकारी को प्रकटीकरण से बचाती है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अतिरिक्त रजिस्ट्रार और सीपीआईओ ने जवाब में कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता, आनुपातिकता परीक्षण, प्रत्ययी संबंध, निजता के अधिकार पर आक्रमण और गोपनीयता के कर्तव्य के उल्लंघन के संदर्भ में जानकारी प्रदान नहीं की जा सकती है।
बता दें, जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास से जुड़े एक स्टोर रूम में आग बुझाने के दौरान बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के बाद आंतरिक जांच शुरू की गई थी। उस समय, वे दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थे।
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जिसके बाद तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने 22 मार्च को न्यायमूर्ति शील नागू (सीजे, पंजाब और हरियाणा एचसी), न्यायमूर्ति जीएस संधावालिया (सीजे, हिमाचल प्रदेश एचसी) और न्यायमूर्ति अनु शिवरामन (कर्नाटक एचसी) की तीन सदस्यीय समिति गठित की।
8 मई को सीजेआई ने समिति की रिपोर्ट को आगे की कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया। इस बीच, जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। जहां वो पहले थे। और सीजेआई के निर्देश के अनुसार उनसे न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया।
हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की प्रारंभिक रिपोर्ट, न्यायमूर्ति वर्मा का जवाब और दिल्ली पुलिस के दस्तावेज सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड कर दिए गए, परन्तु अंतिम जांच रिपोर्ट गोपनीय बनी हुई है। वहीं, वकीलों के हेल्थ इंश्योरेंस को लिए कपिल सिब्बल ने अंबानी-अडानी से 50 करोड़ रुपये मांगे। जिसको लेकर SC बार एसोसिएशन में विरोध हुआ। पढ़ें…पूरी खबर।