सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी और उनके परिवार को मिली Z+ सिक्योरिटी वापस लेने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति पर संभावित खतरे का आकलन करना और उस पर फैसला लेना सरकार का काम है। मामले में सुनवाई कर रही जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता हिमांशु अग्रवाल की याचिका पर ये टिप्पणी की।
अग्रवाल ने इस मामले में दिसंबर, 2019 में बोम्बे हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। देश की शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इसका आकलन और समीक्षा राज्य सरकार को करनी है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल में कहा था कि राज्य गंभीर खतरे के चलते अपने जीवन की रक्षा के लिए सुरक्षा का पूरा खर्च उठाने के इच्छुक व्यक्तियों को Z+ सुरक्षा देने के लिए बाध्य है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने नोट किया कि अंबानी परिवार अपने ऊपर ‘गंभीर खतरे’ के चलते अपनी सुरक्षा के लिए पूरी लागत वहन करने के लिए तैयार था।
बता दें कि यूपीए-2 की सरकार में रिलायंस इंडस्ट्रीज प्रमुख मुकेश अंबानी को ये सुरक्षा मिली थी। उन्हें आतंकवादियों से खतरे के चलते तब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सशस्त्र कमांडो का दस्ता उलब्ध कराने को मंजूरी दी थी। अप्रैल, 2013 में मंत्रालय ने नक्सल विरोधी अभियान में अग्रणी भूमिका निभाने वाले केंद्रीय सुरक्षा बल सीआरपीएफ को तत्काल प्रभाव से जिम्मेदारी उठाने को कहा था। तब तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के कार्यकाल में अंबानी को सुरक्षा की मंजूदी दी गई।
तब इस श्रेणी के सुरक्षा के तहत उन्हें एक पायलट वाहन, उसके आगे पीछे वाहनों में हथियारों से लैस कमांडो को रखने की मंजूरी दी गई। कमांडो को अंबानी की मुंबई और देश में कहीं भी जाने पर हर समय सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई।
उल्लेखनीय है कि मुकेश अंबानी को ‘जेड’ कैटेगरी की सुरक्षा दिए जाने के बाद सरकार ने उनकी पत्नी नीता अंबानी को ‘वाई’ कैटेगरी की सिक्युरिटी दी। गृह मंत्रालय के मुताबिक हथियारों से लैस 10 सीआरपीएफ के कमांडोज नीता की सुरक्षा करेंगे।