उच्चतम न्यायालय ने सोमवार (19 सितंबर) को गैरशिक्षण पृष्ठभूमि के एक व्यक्ति की प्रतिष्ठित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के कुलपति के रूप में नियुक्ति पर सवाल खड़े किए। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की पीठ ने कहा, ‘आप (एएमयू) एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं यूजीसी के नियम आप पर लागू हैं क्योंकि वे अनिवार्य हैं। वीसी (कुलपति) एक शिक्षाविद होना चाहिए और वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसने किसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के रूप में कम से कम दस साल काम किया हो।’ पीठ ने कहा, ‘अगर हर दूसरा केन्द्रीय विश्वविद्यालय नियमों का पालन करता है तो एएमयू क्यों नहीं? एक पूर्व सेना अधिकारी की नियुक्ति क्यों? हम उनकी क्षमताओं पर सवाल नहीं उठा रहे। हमारे सामने सवाल यह है कि उनकी नियुक्ति यूजीसी नियमों के अनुरूप हैं या नहीं।’
पीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की जिसमें एएमयू के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल जमीरउद्दीन शाह की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों के अनुसार कुलपति ने कम से कम 10 साल किसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर या किसी शोध या शैक्षणिक संस्थान में समान पद पर काम किया हो। याचिकाकर्ता सैयद अबरार अहमद की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि न्यूनतम योग्यता तथा उच्चतर शिक्षा में मानकों को लेकर यूजीसी नियम एएमयू पर बाध्यकारी हैं। कल्याणी मतिवानन के फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि शाह एक सेवानिवृत्त सेना जनरल हैं और उनकी कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं है जबकि यूजीसी नियम 2010 के तहत इसकी जरूरत होती है।
एएमयू की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने दलील का विरोध करते हुए कहा कि यूजीसी नियम केवल केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के लिए हैं, वीसी पद की नियुक्ति के लिए नहीं जो कि एक अधिकारी का पद है। शाह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने यूजीसी की धारा 26 का जिक्र करते हुए कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए 26 सितंबर की तारीख तय की।