सुप्रीम कोर्ट ने देश की जेलों में बंद लगभग 4.5 लाख विचाराधीन कैदियों को वोट देने का अधिकार देने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण की दलील पर सुनवाई की, जिसमें कहा गया कि वर्तमान कानून के तहत सभी कैदियों पर मतदान का पूरी तरह प्रतिबंध संविधान और अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है।
याचिका पंजाब की पटियाला निवासी सुनीता शर्मा ने दायर की है। इसमें केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को प्रतिवादी बनाया गया है। याचिका में बताया गया कि यह मुद्दा लगभग 4,50,000 विचाराधीन कैदियों (उन कैदियों को छोड़कर जो चुनाव से जुड़े अपराध या भ्रष्टाचार के मामले में जेल में हैं) के वोट देने के अधिकार से जुड़ा है।
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याचिका में न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई है ताकि जिन कैदियों को चुनावी अपराधों या भ्रष्टाचार के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है, उन्हें उनके वोट देने के अधिकार से वंचित न किया जाए। इसमें कहा गया है कि स्थानीय जेलों में मतदान केंद्र बनाए जाएं और जरूरत पड़ने पर दूसरे निर्वाचन क्षेत्र के विचाराधीन कैदियों को डाक मतपत्र भेजे जाएं।
याचिका में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) सभी कैदियों पर समान रूप से प्रतिबंध लगाती है, चाहे वे दोषी हों या केवल मुकदमे की प्रतीक्षा में हों। यह कानून अपने उद्देश्य के खिलाफ है क्योंकि इसका उद्देश्य केवल अयोग्य लोगों को नियंत्रित करना है, पूरी तरह से नागरिकों को बाहर करना नहीं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जेल में 75 प्रतिशत से ज्यादा कैदी विचाराधीन हैं और इनमें से कई बरी होने से पहले कई सालों तक, कभी-कभी दशकों तक जेल में रहते हैं। याचिका में कहा गया कि ऐसे लोगों को वोट देने से रोकना न सिर्फ उनके बेगुनाह होने के सिद्धांत का उल्लंघन है, बल्कि उन्हें लोकतंत्र में हिस्सा लेने से भी रोकता है।
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याचिका में यह भी कहा गया कि दुनिया के अन्य बड़े लोकतंत्रों में कैदियों पर वोट देने का पूरा प्रतिबंध नहीं लगाया जाता। याचिका में कहा गया है कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी विचाराधीन और परीक्षण-पूर्व कैदियों को वोट देने का अधिकार है। इससे साफ दिखता है कि भारत का दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक मानदंडों से मेल नहीं खाता।
याचिका में आगे कहा गया है कि कैदियों पर पूरा प्रतिबंध निर्दोषता का अनुमान (समान्य रूप से मान्य सिद्धांत) का उल्लंघन करता है। भारत में जेलों में 75 प्रतिशत से ज्यादा कैदी विचाराधीन हैं, यानी अभी उनका मुकदमा चल रहा है, और इनमें से कई लोग कई सालों तक जेल में रहते हैं। ऐसे मामलों में 80-90 प्रतिशत लोग अंत में बरी हो जाते हैं, लेकिन उन्हें तब तक वोट देने का अधिकार नहीं मिलता।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की “Prison Statistics India 2023” रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2023 तक देश की सभी जेलों में 5,30,333 कैदी थे, जिनमें से 3,89,910 यानी 73.5 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं। यह संख्या 2022 में 4,34,302 थी, यानी थोड़ी कम हुई है।