Supreme Court Verdict on Ayodhya Dispute: अयोध्या के जमीन विवाद पर दिए ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 24 बार सेक्युलर यानी धर्म निरपेक्ष शब्द का जिक्र किया है। दो समुदायों के बीच सदियों से जमीन के टुकड़े को लेकर चल रहा विवाद देश का संवेदनशील मुद्दा बन चुका था। ऐसे में सुप्रीम देश और संविधान की भावना के मद्देनजर सेक्युलर शब्द पर खासा जोर दिया।
सहिष्णुता से धर्म निरपेक्षता को प्रोत्साहनः अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने लिखा है, ‘संविधान सभी धर्मों को समानता प्रदान करता है। सहिष्णुता और आपसी सद्भाव से देश और देशवासियों की धर्म निरपेक्षता को लेकर प्रतिबद्धता को बढ़ावा मिलता है। संसद ने औपनिवेशिक शासन से आजादी अतीत में हुई नाइंसाफी को दूर करने के लिए एक संवैधानिक आधार मुहैया कराती है, ताकि हर समुदाय के लोगों को भरोसा दिया जा सके कि उनके पूजा स्थलों की सुरक्षा की जाएगी और आस्था से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी।’
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‘सुधार कानून हाथ में लेने से नहीं हो सकता’: पांच जजों की पीठ ने उस विवाद को खत्म कर दिया जो 1885 में शुरू हुआ था। ‘प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ धार्मिक समानता और धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा देता है। इसके मुताबिक सभी धर्मों की समानता भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक ऐतिहासिक गलतियों को लोग कानून अपने हाथ में लेकर नहीं सुधार सकते। इतिहास की गलतियों को वर्तमान और भविष्य चौपट करने का हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए।
‘संविधान में सभी धर्मों का सम्मान’: कोर्ट ने कहा, ‘हमारा अतीत ऐसे कई कदमों से भरा है जो नैतिक रूप से गलत थे और उनसे आज भी वैचारिक बहस शुरू हो जाती है। संविधान में हमेशा सभी धर्मों की समानता का सम्मान किया है और इसे स्वीकार किया है। संविधान में वर्णित धर्म निरपेक्षता समय के साथ खो नहीं सकती। धर्म निरपेक्ष संविधान का मूल्य समान संविधान की परंपरा में निहित है।’