सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण कोटे पर सुनवाई के दौरान गुरुवार को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की एक चिट्ठी का जिक्र किया। इस चिट्ठी की जानकारी जस्टिस पंकज मिथल ने दी। उन्होंने बताया कि पंडित नेहरू ने आरक्षण व्यवस्था को लेकर 1961 में सभी मुख्यमंत्रियों को एक चिट्ठी लिखकर अपना विचार साझा किया था। इसके साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री ने आरक्षण की जरूरत के बारे में भी महत्वपूर्ण बात कही थी।
सात जजों की संविधान पीठ ने सुनाया था फैसला
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात जजों की संविधान पीठ ने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के दौरान 6:1 के बहुमत से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के कोटे में कोटा दिए जाने की मंजूरी दी। इसके साथ ही अब एससी और एसटी कैटेगरी के अंदर नई सब कैटेगरी बनाए जाने का रास्ता साफ हो गया। राज्य सरकारों के लिए अति पिछड़े तबके को अलग से आरक्षण देने में अब आसानी हो जाएगी। साथ ही वे अपने यहां जातियों के पिछड़ेपन के आधार पर कोटा तय कर सकेंगे।
पूर्व प्रधानमंत्री ने आरक्षण पर दी थी अपनी राय
इस फैसले से पहले जस्टिस पंकज मिथल ने पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की उस चिट्ठी का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था पर सवाल उठाया था। इस चिट्ठी में पंडित नेहरू ने जाति के आधार पर आरक्षण पर चिंता जताते हुए इस प्रथा को छोड़ देने की वकालत की थी। इसकी जगह उन्होंने आर्थिक आधार पर मदद करने पर जोर दिया था।
जस्टिस मिथल ने कहा, “पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 27 जून, 1961 को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक चिट्ठी लिखी थी। इसमें किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताते हुए कहा था कि ऐसी प्रथा को छोड़ दिया जाना चाहिए और नागरिकों की मदद जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर करने पर जोर दिया जाना चाहिए। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मदद की हकदार हैं, लेकिन किसी भी तरह के आरक्षण के रूप में नहीं, विशेषकर सेवाओं में।
नेहरू ने पत्र में आगे लिखा था, मैं चाहता हूं कि मेरा देश हर चीज में प्रथम श्रेणी का देश बने। जिस क्षण हम दोयम दर्जे को बढ़ावा देते हैं, हम खो जाते हैं। किसी पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र वास्तविक तरीका अच्छी शिक्षा के अवसर देना है। इसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है, जो ज्यादा से ज्यादा महत्वपूर्ण होती जा रही है. बाकी सब कुछ किसी ना किसी प्रकार की बैसाखी का प्रावधान है, जो शरीर की ताकत या स्वास्थ्य में कोई वृद्धि नहीं करता है।”
आरक्षण समर्थकों और आरक्षण विरोधियों के बीच इसको लेकर गंभीर विवाद है। एक पक्ष लंबे समय से जाति के आधार पर आरक्षण की वकालत कर रहा है, वहीं दूसरा पक्ष आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की बात पर जोर दे रहा है। इस संवेदनशील मुद्दे पर लंबे समय से समाज में टकराव चल रहा है।