Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को असम के मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। इस याचिका में कथित तौर पर शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए गोलपाड़ा के हसीला बील में बड़े पैमाने पर बेदखली और विध्वंस अभियान (Demolition Drive) चलाने का आरोप लगाया गया है।

सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मुख्य सचिव रवि कोटा, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव ज्ञानेंद्र देव त्रिपाठी, ग्वालपाड़ा के जिला आयुक्त खानिंद्र चौधरी, ग्वालपाड़ा के पुलिस अधीक्षक नवनीत महंत और अन्य अधिकारियों से मामले में जवाब मांगा है। जस्टिस के. विनोद चंद्रन की सदस्यता वाली पीठ ने नोटिस जारी करते करते हुए दो सप्ताह में जवाब मांगा है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिवक्ता अदील अहमद के माध्यम से दायर याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का कोई पर्याप्त समय या अवसर नहीं दिया गया और मनमाने और गलत तरीके से दो दिनों के भीतर अपने घरों, संरचनाओं, दुकानों, इमारतों और फसलों को हटाने के लिए नोटिस जारी किया गया। याचिकाकर्ताओं और इसी प्रकार की स्थिति वाले अन्य व्यक्तियों के मकान, फसलें, संपत्तियां, सामान आदि सभी बेदखली और विध्वंस प्रक्रिया में ध्वस्त कर दिए गए हैं।

भूमिहीन होने का दावा करने वाले याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनके पूर्वजों को ब्रह्मपुत्र नदी के तट कटाव के कारण अपने घर और जमीन खोने के बाद लगभग 50 से 60 साल पहले बलिजाना राजस्व सर्कल के हसीला बील राजस्व गांव में बसना पड़ा था।

याचिका में कहा गया है कि बेदखली और विध्वंस की कार्रवाई व्यक्तिगत सुनवाई के बिना और अपील या न्यायिक समीक्षा के लिए पर्याप्त समय दिए बिना की गई, जो कि “संरचनाओं के विध्वंस के मामले में निर्देश” शीर्षक वाले मामले में जारी दिशानिर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है। पिछले वर्ष नवंबर में तत्कालीन जस्टिस गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने अनधिकृत संरचनाओं के विध्वंस को नियंत्रित करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर निर्देश जारी किए थे।

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शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी थी कि राज्य प्राधिकारियों द्वारा उसके निर्देशों का उल्लंघन करने पर आपराधिक अवमानना और अभियोजन का सामना करना पड़ेगा।

संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कई निर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना पूर्व कारण बताओ नोटिस के कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जाएगी। कोर्ट ने आगे कहा कि तोड़फोड़ का आदेश 15 दिनों की अवधि तक लागू नहीं होगा और इसे प्रत्येक नगरपालिका और स्थानीय प्राधिकरण द्वारा बनाए रखने हेतु एक निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि उसके निर्देश किसी भी सार्वजनिक स्थान, जैसे सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन से सटे या किसी नदी या जल निकाय पर अनधिकृत संरचना होने पर लागू नहीं होंगे, और उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहां न्यायालय द्वारा तोड़फोड़ का आदेश दिया गया हो। वहीं, मध्य प्रदेश की एक कोर्ट ने मां की हत्या के जुर्म में बेटे को मौत की सजा सुनाई है। पढ़ें…पूरी खबर।