Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) को अवमानना नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत ने यह नोटिस ICU और CCU सुविधाओं में रोगी सुरक्षा के लिए समान मानक तैयार करने के अपने निर्देशों का पालन करने में विफल रहने पर नोटिस जारी किया है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने यह कारण बताओ नोटिस जारी किया है। खंडपीठ ने प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के संबंधित अतिरिक्त मुख्य सचिवों या टॉप स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को कारण बताओ हलफनामों के साथ 20 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश दिया।
बहानेबाजी नहीं चलेगी- सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने निर्देश दिया कि सभी संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के स्वास्थ्य विभाग के संबंधित अतिरिक्त मुख्य सचिव/वरिष्ठतम अधिकारी को नोटिस जारी किया जाता है। साथ ही कहा गया कि न्यायालय के प्रति इस तरह के लापरवाह रवैये के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए। उक्त अधिकारी अगली सुनवाई की तारीख, यानी 20.11.2025 को अपने व्यक्तिगत रूप से पुष्ट कारण बताओ हलफनामों के साथ इस न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहें। पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी भी बहानेबाजी पर विचार नहीं किया जाएगा।
न्यायाधीशों ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाता है कि जिन अधिकारियों को उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है, वे किसी भी पूर्व नियुक्ति या अन्य कार्यक्रम सहित कोई बहाना नहीं देंगे, जिन्हें आज पारित आदेश को प्राथमिकता देने के लिए पुनर्निर्धारित किया जाएगा।
इन राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों को सुप्रीम कोर्ट ने किया तलब
डिफ़ॉल्ट राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मिजोरम, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, चंडीगढ़, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, पुडुचेरी, लक्षद्वीप, लद्दाख, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, और दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव शामिल हैं।
कोर्ट एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था जिसकी शुरुआत 2016 में हुई थी। मूल शिकायत प्राइवेट अस्पतालों में कथित चिकित्सा लापरवाही और आईसीयू व सीसीयू के लिए एक समान मानकों के अभाव से संबंधित थी। हालांकि अपील 2024 में खारिज कर दी गई थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में CCU के मानकीकरण के व्यापक मुद्दे की निगरानी जारी रखने का फैसला किया। तब से कोर्ट ने कई आदेश पारित कर केन्द्र और राज्यों को एक रूपरेखा पर मिलकर काम करने का निर्देश दिया है।
इस साल 5 अगस्त को कोर्ट ने प्रत्येक राज्य को निर्देश दिया कि वे कॉर्पोरेट अस्पतालों सहित सभी हितधारकों के साथ बैठक करके आईसीयू/सीसीयू में भर्ती, उपचार, स्टाफिंग, स्वच्छता और बुनियादी ढाँचे के लिए मसौदा मानदंड तैयार करें। न्यायालय ने शीर्ष स्वास्थ्य सचिवों को व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी लेने और प्रस्तावों पर हस्ताक्षर करने के लिए भी कहा।
19 अगस्त को जब मामले पर फिर से विचार किया गया, तो न्यायालय ने पाया कि इतनी तेजी के बावजूद, यह प्रक्रिया अधूरी रह गई। न्यायालय ने ज़ोर देकर कहा कि एक व्यापक रोडमैप के बिना कोई भी प्रभावी निर्देश जारी नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों की राय सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी , एमिकस क्यूरी करण भरिहोके और डॉ. नितीश नाइक (एम्स, नई दिल्ली में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर) की तीन सदस्यीय समिति गठित की। न्यायालय ने राज्यों को 30 सितंबर तक अपनी रिपोर्ट पूरी करके 5 अक्टूबर तक समिति को भेजने का निर्देश दिया।
18 सितंबर को, जब कुछ राज्यों के वकीलों ने और समय मांगा, तो पीठ ने समय सीमा थोड़ी बढ़ा दी, लेकिन चेतावनी दी कि अगर समय-सीमा का पालन नहीं किया गया तो इसके परिणाम भुगतने होंगे। फिर भी, 13 अक्टूबर तक, न्यायालय ने पाया कि दो दर्जन से ज़्यादा राज्य और केंद्र शासित प्रदेश या तो अपनी रिपोर्ट जमा करने में विफल रहे थे या उन्होंने उन्हें देरी से जमा किया था। नाराजगी व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा कि कोर्ट के धैर्य की परीक्षा हो चुकी है।
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पीठ ने कहा कि हम विभिन्न राज्यों द्वारा दिखाई गई लापरवाही से हैरान होने के बजाय अधिक दुखी हैं, क्योंकि इस अभ्यास के संबंध में न्यायालय द्वारा अत्यधिक उदारता दिखाए जाने के बावजूद, संबंधित अधिकारियों ने इस न्यायालय के आदेशों को बहुत हल्के में लिया है।
कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि आगे से अनुपालन न करने या लापरवाही से रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर संबंधित अधिकारियों और राज्यों, दोनों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, कोर्ट ने तीन-सदस्यीय समिति से अनुरोध किया कि वह पहले से उपलब्ध सामग्री पर विचार-विमर्श शुरू करे और एक मसौदा रिपोर्ट तैयार करे। मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर को हगी। इस दौरान देशभर के शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारियों के कोर्ट में उपस्थित होने की उम्मीद है।
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