बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसा हुई है। इस हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिस पर आज सुनवाई चल रही थी। याचिका पर सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ कर रही थी। सुनवाई के दौरान ही जस्टिस गवई ने बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के बयान का जिक्र किया। हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया। जस्टिस गवई ने कहा कि हम पर संसदीय कार्यों में दखल देने का आरोप लग रहा है, हम आदेश कैसे दें।
जस्टिस गवई ने क्या कहा
जस्टिस गवई ने कहा, “आप चाहते हैं कि हम केंद्र को निर्देश देते हुए आदेश जारी करे? हम पर संसदीय और कार्यकारी कार्यों में हस्तक्षेप करने का आरोप है।” याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने राज्य में 2021 के चुनाव के बाद हुई हिंसा के मद्देनजर दायर एक लंबित याचिका में कुछ नए तथ्य रिकॉर्ड में लाने के लिए कुछ अन्य दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति मांगी है।
बीजेपी सांसद ने की थी आलोचना
बता दें कि एक मामले में 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि की कार्रवाई को अवैध और गलत करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों के लिए उनके समक्ष प्रस्तुत विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए एक समयसीमा भी निर्धारित की थी। बाद में भाजपा सांसद दिनेश शर्मा ने कहा था, “भारत के संविधान के अनुसार, कोई भी लोकसभा और राज्यसभा को निर्देश नहीं दे सकता है और राष्ट्रपति ने पहले ही इस पर अपनी सहमति दे दी है। कोई भी राष्ट्रपति को चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं।”
कौन हैं बीजेपी के निशिकांत दुबे जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे डाली?
जानें याचिका में क्या मांग की गई
जस्टिस गवई की टिप्पणी दोनों बयानों का संदर्भ देती हुई लग रही है। इस बीच मुर्शिदाबाद हिंसा के संबंध में सोमवार की याचिका में केंद्र सरकार को अनुच्छेद 355 और 356 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने का निर्देश देने की मांग की गई है। भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करने वाली बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए ये याचिका दायर की गई है।
संविधान का अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार के कर्तव्य से संबंधित है, जो राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाता है, जबकि अनुच्छेद 356 राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के मामले में प्रावधानों को दर्शाता है। नए आवेदन में बताया गया है कि लंबित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होनी है। इसमें 2022 से अप्रैल 2025 तक हिंसा, अधिकारों के उल्लंघन, महिलाओं के खिलाफ अपराधों की घटनाओं, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बाद हुई हिंसा की जांच करने और अदालत को रिपोर्ट सौंपने के लिए एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और दो सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की मांग करते हुए एक अतिरिक्त आवेदन दायर करने की अनुमति मांगी गई है।