सुप्रीम कोर्ट ने 80-वर्षीय एक व्यक्ति को राहत प्रदान करते हुए उसके बेटे को पिता की संपत्ति खाली करने का आदेश दिया है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने बुजुर्ग की अपील पर मुंबई उच्च न्यायालय का अप्रैल का फैसला पलट दिया। उच्च न्यायालय ने एक न्यायाधिकरण के उस फैसले को निरस्त कर दिया था, जिसमें इसने (न्यायाधिकरण ने) बेटे को निर्देश दिया था कि वह अपने पिता की दो संपत्तियों का कब्जा उन्हें वापस करे।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत भरण-पोषण न्यायाधिकरण को बुजुर्गों के भरण-पोषण के दायित्व के उल्लंघन की स्थिति में किसी वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति से किसी बच्चे या रिश्तेदार को बेदखल करने का आदेश देने का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने 2007 के अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि इसकी रूपरेखा स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि यह कानून वृद्ध व्यक्तियों की दुर्दशा दूर करने तथा उनकी देखभाल एवं सुरक्षा के लिए बनाया गया था।
आर्थिक रूप से सशक्त होने के बावजूद बेटे ने अपने पिता को नहीं रहने दिया
न्यायालय ने कहा, ‘‘एक कल्याणकारी कानून होने के नाते, इसके प्रावधानों की व्याख्या उदारतापूर्वक की जानी चाहिए, ताकि इसके लाभकारी उद्देश्य को आगे बढ़ाया जा सके। इस न्यायालय ने कई अवसरों पर यह टिप्पणी की है कि यदि वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण के दायित्व का उल्लंघन होता है तो न्यायाधिकरण को वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति से किसी बच्चे या रिश्तेदार को बेदखल करने का आदेश देने का पूरा अधिकार है।’’ शीर्ष अदालत के 12 सितंबर के आदेश में कहा गया है कि आर्थिक रूप से सशक्त होने के बावजूद बेटे ने अपने पिता को उन्हीं की संपत्ति में रहने की अनुमति न देकर अपने वैधानिक दायित्वों का उल्लंघन किया।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता की आयु लगभग 80 वर्ष है, जबकि उनकी पत्नी 78 वर्ष की हैं और उनके तीन बच्चे हैं। न्यायालय ने कहा कि उनका बड़ा बेटा व्यवसाय करता है। न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता ने मुंबई में दो संपत्तियां खरीदीं और वह अपने बच्चों को इन संपत्तियों में छोड़कर अपनी पत्नी के साथ उत्तर प्रदेश चले गए। पीठ ने आगे कहा कि बड़े बेटे ने संपत्तियां अपने कब्जे में ले ली थीं और अपने पिता को वहां रहने की अनुमति नहीं दी थी।
कोर्ट ने 3 हजार रुपये मासिक भरण पोषण का दिया था आदेश
अपीलकर्ता और उसकी पत्नी ने जुलाई 2023 में भरण-पोषण और संपत्ति को कब्जामुक्त करने के लिए एक अर्जी दायर की और पिछले साल जून में न्यायाधिकरण ने बेटे को दोनों परिसरों का कब्जा पिता को सौंपने का निर्देश दिया। न्यायाधिकरण ने बुजुर्ग माता-पिता को 3,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का भी निर्देश दिया। न्यायाधिकरण के आदेश को अपीलीय न्यायाधिकरण ने बरकरार रखा। इसके बाद, बेटे ने उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने उसकी याचिका स्वीकार कर ली और कहा कि न्यायाधिकरण को किसी वरिष्ठ नागरिक के पक्ष में संपत्ति खाली कराने का आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है। इस फैसले के खिलाफ 80-वर्षीय व्यक्ति ने शीर्ष अदालत का रुख किया था।