सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने कोरोनावायरस के संकट के बीच मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि कोरोना संकट के इस बेहद कठिन समय में भी मीडिया का एक वर्ग पूरी ताकत के साथ यह कह रहा है कि संक्रमण फैलाने के लिए पूरी तरह तब्लीगी जमात जिम्मेदार है। मीडिया के इसी वर्ग ने मुस्लिमों को आतंकी और राष्ट्र विरोधी नागरिक भी बताया है। इसके बाद देशभर में मुसलमानों पर हमले और उनसे भेदभाव की खबरें सामने आई हैं। काटजू के इस बयान को सीधे तौर पर मीडिया पर हमला कहा जा रहा है। हालांकि, सोशल मीडिया पर लोगों ने काटजू के इस तर्क का जवाब दिया है।

ट्विटर पर हैंडल @UdataTir ने कहा, “जज साहब कानून की आंख पर पट्टी बंधी है हमारी आंखों पर नही, मीडिया नहीं था तब भी बहुत से जुल्म सहे थे हिन्दुओ ने, लेकिन अब इनकी करतूतें बाहर आने लगी हैं।” वहीं ललित शुक्ला नाम के एक यूजर ने लिखा है, “मुसलमान अपनी छवि खुद बिगाड़ने पर तुला है इसमें मीडिया क्या करे।” हरिओम नाम के एक अन्य यूजर ने लिखा, “मीडिया ने हिंदू धर्म की भी कोई कमी नहीं छोड़ी है, जब समय मौका मिलता है तब तक खूब मजाक उड़ाया हिंदू धर्म का।”

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जहां मार्कंडेय काटजू के इस बयान के कई विरोधी थे, तो वहीं कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया। नरेश भार्गव नाम के यूजर ने कहा, “मीडिया का एक वर्ग नहीं, बल्कि 90 फीसदी मीडिया यही काम कर रहा है।” वहीं शैलेंद्र प्रताप ने लिखा, “सर जानते तो सब है लेकिन इन पर लगाम कौन और कैसे लगायेगा ये पूरी तरह से बिक चुके है अखबार तक बिक गया है। अगर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बिक गया है तो मतलब साफ है देश खतरे मे है।”

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क्या थी मार्कंडेय काटजू की पूरी बात?
काटजू ने अपने बयान के समर्थन में तीन उदाहरण भी दिए। उन्होंने कहा कि तब्लीगी जमात के लोग हर साल मार्च में मरकज के लिए इकट्ठा होते थे, इस बार भी हुए। यहां कई विदेशी आते हैं। हो सकता है अनजाने में यह बीमारी दूसरों में फैली, लेकिन यह कहना है कि ऐसा जानबूझकर किया गया, यह बेतुका है।

काटजू ने शर्जील इमाम और गोरखपुर के डॉक्टर कफील खान के भी उदाहरण दिए। उन्होंने कहा कि शरज़ील ने देश को तोड़ने की बात नहीं की, बल्कि सीएए के खिलाफ अपनी भावना बताना चाहता था। वहीं डॉक्टर कफील खान ने गोरखपुर में बच्चों की मौतों के बीच अपनी जेब से पैसे दिए थे। लेकिन उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।