सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को गुजरात हाई कोर्ट के एक फैसले पर नाराजगी जताई है। हाई कोर्ट ने एक बलात्कार पीड़िता की 26 हफ्ते की प्रेगनेंसी को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की याचिका को स्थगित कर दी थी। जिस पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई के दौरान कीमती समय बर्बाद हो गया है।
शनिवार को एक स्पेशल सिटिंग में जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में तुरंत सुनवाई होनी चाहिए, न कि मामले को किसी भी सामान्य मामले के रूप में मानने और इसे स्थगित करने का लापरवाह रवैया होना चाहिए।
प्रेगनेंसी टर्मिनेशन के लिए खटखटाया था सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि 25 वर्षीय महिला ने 7 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और मामले की सुनवाई अगले दिन हुई थी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 अगस्त को प्रेगनेंसी की स्थिति के साथ-साथ याचिकाकर्ता की मेडिकल कंडीशन का पता लगाने के लिए एक मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश जारी किया था। रिपोर्ट 10 अगस्त को मेडिकल कॉलेज द्वारा प्रस्तुत की गई थी जहां उसकी जांच की गई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि रिपोर्ट को हाई कोर्ट ने 11 अगस्त को रिकॉर्ड पर लिया था लेकिन अजीब बात है मामले को 12 दिन बाद यानी 23 अगस्त को लिस्ट किया गया था। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हर दिन की देरी महत्वपूर्ण थी और इसका बहुत महत्व था।
गुजरात हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने उसके संज्ञान में लाया है कि मामले की स्थिति से पता चलता है कि याचिका 17 अगस्त को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी, लेकिन अदालत में कोई कारण नहीं बताया गया था और आदेश अभी तक सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइ पर अपलोड नहीं किया गया है। पीठ ने कहा, “इस परिस्थिति में हम इस अदालत के महासचिव को गुजरात हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से पूछताछ करने और यह पता लगाने का निर्देश देते हैं कि विवादित आदेश अपलोड किया गया है या नहीं।”
याचिकाकर्ता ने वकील विशाल अरुण मिश्रा के माध्यम से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ को बताया कि जब मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था तब याचिकाकर्ता महिला 26 हफ्ते की प्रेग्नेंट थी। पीठ ने पूछा, ”11 अगस्त को इसे 23 अगस्त तक के लिए किस वजह से रोक दिया गया था। पीठ ने यह भी कहा कि अब तक कितने दिन बर्बाद हो चुके हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट को लगाई फटकार
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मामला 23 अगस्त के बजाय 17 अगस्त को सूचीबद्ध किया गया था। यह देखते हुए कि मामले को स्थगित करने में मूल्यवान दिन बर्बाद हो गए, पीठ ने कहा कि जब याचिकाकर्ता ने गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की थी और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, तो वह पहले से ही 26 सप्ताह की गर्भवती थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कम से कम ऐसे मामलों में तुरंत कार्यवाई होनी चाहिए और इसे किसी भी सामान्य मामले के रूप में मानने और इसे स्थगित करने का ढुलमुल रवैया नहीं होना चाहिए। पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि हमें यह कहते हुए और यह टिप्पणी करते हुए खेद है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह मामले की पहली सुनवाई 21 अगस्त को करेगी। पीठ ने याचिका पर राज्य सरकार और संबंधित एजेंसियों से जवाब भी मांगा।
मेडिकल बोर्ड से मांगी रिपोर्ट
पीठ ने कहा, “इन परिस्थितियों में, हम याचिकाकर्ता को एक बार फिर जांच के लिए अस्पताल के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश देते हैं और लेटेस्ट रिपोर्ट कल शाम 6 बजे तक इस अदालत को सौंपी जा सकती है।” सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वह इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश का इंतजार करेगी। पीठ ने मेडिकल बोर्ड की तरफ से हाई कोर्ट में दाखिल की गयी रिपोर्ट के बारे में भी पूछा।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक, गर्भावस्था का समापन किया जा सकता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) अधिनियम के तहत, गर्भावस्था को समाप्त करने की ऊपरी सीमा विवाहित महिलाओं, बलात्कार पीड़ितों सहित विशेष श्रेणियों और अन्य कमजोर महिलाओं जैसे कि विकलांग और नाबालिगों के लिए 24 हफ्ते है।