Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की अपील को खारिज दिया। जिसमें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्च के उस फैसले को चुनौती दी गई थी। NCPCR की याचिका में कहा गया था कि 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की वैध (Valid Marriage) कर सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में आयोग का कोई अधिकार नहीं बनता।

जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justices B V Nagarathna) और जस्टिस आर महादेवन (Justices R Mahadevan) की पीठ ने कहा कि हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि एनसीपीसीआर (NCPCR) इस तरह के आदेश से कैसे असंतुष्ट हो सकता है। यदि हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 (Article 226) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए दो व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान करना चाहता है, तो एनसीपीसीआर के पास ऐसे आदेश को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है। इस याचिका का खारिज किया जाता है।

जस्टिस नागरत्ना ने बाल अधिकार संस्था के हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाने के अधिकार पर सवाल उठाया। जज ने कहा कि एनसीपीसीआर के पास ऐसे आदेश को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है… अगर दो नाबालिग बच्चों को हाई कोर्ट संरक्षण प्रदान करता है, तो एनसीपीसीआर ऐसे आदेश को कैसे चुनौती दे सकता है… यह अजीब है कि एनसीपीसीआर, जिसका काम बच्चों की सुरक्षा करना है, उसने ऐसे आदेश को चुनौती दी है।

आयोग के वकील ने कहा कि उनकी चुनौती कानून के प्रश्न पर है कि क्या कोई नाबालिग लड़की कानूनी रूप से वैध विवाह केवल इसलिए कर सकती है, क्योंकि पर्सनल लॉ इसकी अनुमति देता है। हालांकि, पीठ ने कहा कि कानून का कोई सवाल ही नहीं उठता। साथ ही कहा कि कृपया आप उचित मामले में चुनौती दें।

जस्टिस नागरत्ना ने नाबालिग किशोरों के प्यार में पड़ने का भी ज़िक्र किया और कहा कि ऐसे मामलों को अलग नजरिए से देखना होगा। उन्होंने कहा कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण)अधिनियम है, जो दंडात्मक मामलों को देखता है, लेकिन ऐसे प्रेम संबंध भी होते हैं जहां वयस्क होने की कगार पर पहुंच चुके किशोर भाग जाते हैं, और जहां सच्चे प्रेम संबंध होते हैं, वे शादी करना चाहते हैं… ऐसे मामलों को आपराधिक मामलों की तरह न देखें। हमें आपराधिक मामलों और इस मामले में अंतर करना होगा।

नागरत्ना ने ने कहा कि अगर लड़की किसी लड़के से प्यार करती है और उसे जेल भेज दिया जाता है, तो उस लड़की को कितनी पीड़ा होती है, यह देखिए, क्योंकि उसके माता-पिता भागने को छिपाने के लिए पॉक्सो का मामला दर्ज करा देंगे।

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बता दें, हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने 13 जून को पठानकोट के एक मुस्लिम जोड़े की याचिका पर यह आदेश पारित किया था, जिन्होंने सुरक्षा की मांग करते हुए कोर्ट का रुख किया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में विचारणीय मुद्दा विवाह की वैधता का नहीं, बल्कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उनके जीवन और स्वतंत्रता को खतरे की आशंका का समाधान करना है।

कोर्ट ने पठानकोट के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को याचिकाकर्ताओं के अभ्यावेदन पर निर्णय लेने तथा कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि अदालत इस तथ्य से अपनी आंखें नहीं मूंद सकती कि याचिकाकर्ताओं की आशंकाओं का समाधान किया जाना ज़रूरी है। सिर्फ़ इसलिए कि याचिकाकर्ताओं ने अपने परिवार वालों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी की है, उन्हें भारत के संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। वहीं, हाई कोर्ट के आदेश पर कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद के खिलाफ FIR दर्ज की गई है। पढ़ें…पूरी खबर।