सर्वोच्च न्यायालय ने मनरेगा के लिए राज्यों को पर्याप्त कोष जारी नहीं करने पर केंद्र की खिंचाई की और उससे सूखाग्रस्त राज्यों में इस योजना पर खर्चे का ब्योरा देने को कहा। शीर्ष अदालत ने कहा कि राहत अभी दी जानी चाहिए, एक साल बाद नहीं। न्यायमूर्ति एमबी लोकुर की अध्यक्षता वाले पीठ ने कहा, अगर आप कोष जारी नहीं कर रहे हैं, तो कोई भी काम करना पसंद नहीं करेगा। राज्य कहेंगे कि हमारे पास कोष नहीं है, इसलिए वे मनरेगा कार्य के लिए किसी को पैसे नहीं दे सकते। कोई राज्य लोगों से कोई प्रतिबद्धता नहीं जताएगा।

पीठ ने कहा, राहत तुरंत दी जानी चाहिए, एक साल बाद नहीं। तापमान 45 डिग्री सेल्सियस पर है, पेयजल तक नहीं है, वहां कुछ भी नहीं है। आपको कुछ करना होगा और समय पर राहत देनी होगी। पीठ ने कहा कि सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार, औसत कार्यदिवस 48 हैं जबकि कानून कहता है कि यह सौ दिन होने चाहिए। पीठ ने कहा, इस दलील में दम है कि चूंकि आप (केंद्र) कोष जारी नहीं कर रहे हैं, राज्य मनरेगा के तहत लोगों को काम देने के इच्छुक नहीं हैं और इसलिए औसत कार्यदिवस कम होंगे। कोर्ट ने कहा, अहसास होना चाहिए कि समस्या है। नौ राज्यों और अब राजस्थान ने सूखा घोषित किया है। यह मानना मुश्किल है कि बुंदेलखंड और मराठवाड़ा में सूखा नहीं है।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने पीठ को जानकारी दी कि केंद्र द्वारा वेतन दायित्व के लिए कुछ दिन में 7983 करोड़ रुपए जारी किए जाएंगे जबकि 2400 करोड़ रुपए के सामग्री दायित्व को जून में मंजूरी दी जाएगी। उन्होंने कहा कि सूखाग्रस्त राज्यों के लिए मजदूरी दायित्व के रूप में 2723 करोड़ रुपए जारी किए जा रहे हैं।