तीन कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त की गई तीन सदस्यीय कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट को बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट जमा की है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस मामले का हल निकालने के लिए क़रीब 85 किसान संगठनों से बात की गई है। तीन सदस्यीय कमेटी का गठन जनवरी में शीर्ष अदालत ने तीन विवादास्पद कानूनों पर गतिरोध को समाप्त करने में मदद करने के लिए किया था। कानूनों पर अदालत ने भी रोक लगा दी थी।

कमेटी के एक सदस्य के मुताबिक, ‘रिपोर्ट 19 मार्च को सौंप दी गई थी।’ हालाँकि, उन्होंने किसी भी तरह का विवरण देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह एक “गोपनीय प्रक्रिया” है और यह मामला अदालत में लंबित है। कोर्ट ने किसानों और सरकार के बीच बार-बार बातचीत के बेनतीजा निकलने के बाद कमेटी का गठन किया था । चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कमेटी बनाते हुए कहा था, “हम समस्या को हल करना चाहते हैं और इसीलिए हम कमेटी बना रहे हैं।” उन्होंने कहा था कि सरकार ने किसानों के आंदोलन से निपटने में कोर्ट को “निराश” किया है।

कोर्ट ने कहा था कि ये किसानों के जीवन और मृत्यु से जुड़ा है। हम कानूनों से चिंतित हैं। हम आंदोलन से प्रभावित लोगों के जीवन और संपत्ति को हो रहे नुकसान से चिंतित हैं। हम समस्या को सबसे अच्छे तरीके से हल करने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे पास जो शक्तियां हैं, उनमें से एक कानून को निलंबित करना है इसलिए ऐसा कर रहे हैं।

कमेटी के लिए, अदालत ने प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, शेतकारी संगठन के अनिल घणावत, पूर्व राज्यसभा सदस्य भूपिंदर सिंह मान और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रमोद जोशी के नामों का सुझाव दिया था।

सदस्यों को लेकर बाद में वाद शुरू हो गया था क्योंकि ये सभी कृषि कानूनों के समर्थक थे। कमेटी बनाए जाने के एक दिन बाद, भूपेंद्र सिंह मान, जो कि भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं, ने समिति से यह कहते हुए कदम पीछे खींच लिए कि वे “किसानों के हितों से समझौता” नहीं कर सकते।

किसानों के समूहों ने कमेटी को खारिज कर दिया था और कहा था कि सदस्य पहले से ही कृषि कानूनों के पक्ष में थे। पंजाब के किसानों ने कहा था, “हम इस कमेटी को स्वीकार नहीं करते हैं, इस कमेटी के सभी सदस्य सरकार समर्थक हैं और ये सदस्य कानूनों को सही ठहरा रहे हैं।”