West Bengal Governor C V Ananda Bose: पश्चिम बंगाल राजभवन की एक महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्च सहमत हो गया है। महिला ने राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। जिसमें संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को दी गई छूट को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी है और महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया है।
राजभवन में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इसके बाद से इस पूरे घटनाक्रम में कई उतार-चढ़ाव आए। बोस ने जांच के लिए आई राज्य पुलिस को सहयोग देने से मना कर दिया था। उन्होंने अपने खिलाफ जांच को गैरकानूनी के साथ-साथ संविधान के खिलाफ भी बताया था।
क्या है पूरा घटनाक्रम
राजभवन की एक कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी ने मई, 2024 को कोलकाता पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि बोस ने राजभवन में दो बार उसके साथ छेड़छाड़ की। राज्यपाल ने इसे चुनावी माहौल में राजनैतिक फायदे के लिए उठाया कदम बता दिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई। राज्यपाल ने कह दिया कि वे पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और उनकी पुलिस को कोई सहयोग नहीं करेंगे। यहां तक कि राजभवन में पुलिस कर्मियों के आने पर रोक लगा दी गई।
कोलकाता पुलिस में शिकायत के बाद मामला दर्ज हुआ और राज्यपाल के खिलाफ जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई। 8 सदस्यीय कमेटी की अगुआ डिप्टी कमिश्नर (सेंट्रल) इंदिरा मुखर्जी बनाई गईं। उन्होंने राजभवन से बताए गए दिनों के सीसीटीवी फुटेज मांगे। इस फुटेज को देने से इनकार कर दिया गया। दूसरी तरफ गवर्नर हाउस में आम लोगों और मीडिया के लिए ये फुटेज जारी किया गया।
उन्होंने राज्य पुलिस को गवर्नर हाउस के भीतर आने पर रोक लगा दी। इसके लिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 361 का हवाला देते हुए लिखा कि किसी भी राज्यपाल पर उसके कार्यकाल के दौरान कोई आपराधिक मुकदमा शुरू नहीं हो सकता, न ही इसकी जांच की जा सकती है।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट महिला की याचिका पर जांच के लिए राजी हो गया है।
