हिमाचल प्रदेश पर कर्ज एक लाख करोड़ को छूने ही वाला है। सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की भी रही हो मगर कर्ज लेने की गति पर कोई भी लगाम नहीं लगा पाया है। 1977 व 1990 में शांता कुमार की सरकार के बाद इस दिशा में किसी ने गंभीर प्रयास नहीं किए। वोट राजनीति व मुफ्त बांटने की नीति ने प्रदेश को कंगाली के कगार पर खड़ा कर दिया है। वर्तमान में प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुखिया सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कुछ कठोर कदम उठाने शुरू किए हैं, कड़वे घूंट पीने का जोखिम उठाया है। मगर यह कड़वे घूंट प्रदेश की खराब आर्थिक स्थिति को कितनी संजीवनी दे पाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा। इतना जरूर है कि कड़वे घूंट पीने का जो जोखिम मुख्यमंत्री ने उठाया है उससे उनकी पार्टी भी हैरान है जबकि विपक्षी भाजपा की आलोचना भी जनता के बीच कोई ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ रही है।

चुनावों के दौरान अपनी ही पार्टी के घोषणापत्र के विपरीत मुख्यमंत्री ने पहला कदम प्रदेश में दी जा रही 125 यूनिट मुफ्त बिजली पर कट लगा दिया है। हर महीने इससे करोड़ों रुपए का घाटा प्रदेश बिजली बोर्ड को हो रहा था जिसकी भरपाई सरकार को करनी पड़ रही थी। रोचक यह है कांग्रेस ने 2022 के विधानसभा चुनावों में प्रदेश के लोगों को 125 यूनिट की जगह 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा किया था मगर लोकसभा चुनावों व उसके बाद हुए विधानसभा के उपचुनावों के बाद सुक्खू सरकार ने झटका दे दिया और यह सुविधा कुछ श्रेणियों को छोड़ बाकी के लिए बंद कर दी।

पानी के लिए देना होगा पैसा

जनता ने इसका कोई खास विरोध भी नहीं किया है। भाजपा सरकार ने 2022 में प्रदेश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल कनेक्शन मुफ्त कर दिए थे मगर यह निर्णय भी सुक्खू सरकार ने बदल दिया है। इससे विभाग की आर्थिक हालत बदहाल हो गई है इसका हवाला देकर अब हर कनेक्शन पर 100 रुपए देना होगा। वाणिज्यक दरें अलग से होंगी। पानी चाहिए तो पैसा देना होगा। इससे विभाग को हर महीने करोड़ों की आमदनी होगी। यूं सही भी है किसी ने मुफ्त में बिजली पानी मांगा भी नहीं था तो इसका विरोध भी नहीं हो रहा है।

फ्री बस सेवा बंद

एक और कड़वा घूंट प्रदेश के ऐसे 460 स्कूलों को बंद व विलय करके दे दिया जिनमें विद्यार्थियों के तादाद दस या इससे कम थी। यह भी एक बड़ा कदम सरकार का माना जा रहा है। अब सरकार ने केंद्र से मिलने वाले राशन का दाम भी बढ़ा दिया है। परिवहन खर्चा ज्यादा आने का कारण दिया गया है। आटा व चावल अब प्रदेश के डिपो में दो से तीन रुपए महंगे मिलेंगे। यही नहीं सुक्खू सरकार ने घाटे में चल रही एचआरटीसी में भी मुफ्त यात्रा व चाबुक चला दिया है। पुलिस, छात्र, महिलाएं व अन्य वर्गों के लिए जो यात्रा में छूट थी या निशुल्क थी उस पर कैंची चला दी है। उम्मीद जताई है कि इससे करोड़ों का जो घाटा हो रहा है उस पर काबू पाया जा सकेगा। यही नहीं प्रदेश के विश्राम गृहों चाहे व लोनिवि का हो या जल शक्ति विभाग, वन या बिजली बोर्ड का सभी में सरकारी कर्मियों या अन्य श्रेणियों को नाममात्र शुल्क की सुविधा खत्म करके सबके लिए नई दरें तय कर दी हैं ताकि इनकी दशा व दिशा को सुधारा जा सके।

महिलाओं को हर महीने जो 1500 रुपए देने का एलान था उसके मापदंडों में भी सख्ती कर दी गई है। अब इस मद पर सरकार का काफी कम पैसा खर्च होगा। विपक्ष की चिल पौं के बीच सरकार अपने कठोर निर्णयों पर कायम दिख रही है। कई और कठोर कदम भी सुक्खू सरकार ने उठाए हैं जिसके परिणाम आने वाले दिनों में देखने को मिल सकते हैं।

मुफ्त बांटने की प्रथा जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक वोट की राजनीति के कारण देखी जा रही है उस पर लगाम लगाने का जोखिम हिमाचल प्रदेश की सरकार ने उठाया है, जिसे कई मायनों में सराहनीय व सही कदम माना जा रहा है। अभी यह सिलसिला रुका नहीं है, संकेत मिल रहे हैं कि सुक्खू सरकार और अधिक कड़वे घूंट पीने की योजना बना चुकी है। आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार ने जमीन खरीद फरोख्त, पंजीकरण समेत अन्य कई सेवाओं की दरों में कई गुणा बढ़ोतरी की है ताकि उसका खजाना कुछ भर सके और आर्थिक आपातकाल से बचा जा सके।