पंजाब पुनर्गठन अधिनियम पंजाब विधानसभा में 18 सिंतबर 1966 को पास हुआ था और यह पहली नंवबर 1966 को लागू हुआ तो हरियाणा को अलग राज्य का दर्जा दिया गया और पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल प्रदेश में मिलाया गया।

इस अधिनियम के तहत चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। इसके बाद से ही चंडीगढ़ पर अधिकार को लेकर पंजाब व हरियाणा में जंग छिड़ती रही। हरियाणा चंडीगढ़ को अंबाला का हिस्सा बताकर अपना बताता रहा तो पंजाब ने इसे अपना हिस्सा मान कर हरियाणा को अपनी राजधानी कहा।

पंजाब ने मोहाली को राजधानी की तरह और हरियाणा ने पंचकूला का विकास उस तर्ज पर करने के लिए मोर्चाबंदी भी की, मगर आज भी चंडीगढ़ अलग केंद्र शासित प्रदेश है जिसके कर्मचारी केंद्र सरकार के अधीन हैं। भले ही पंजाब हरियाणा की राजधानी और हाई कोर्ट आज भी चंडीगढ़ में है।

हिमाचल प्रदेश की अपेक्षाकृत पंजाब व हरियाणा दोनों बड़े राज्य हैं और दोनों की यह कोशिश रही है कि हिमाचल को दबाया जाता रहे। यही कारण है कि पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत हिमाचल प्रदेश को जो चंडीगढ़ में 7.19 फीसद का हिस्सा मिलना है, वह आज तक नहीं दिया गया। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया था और 27 सितंबर 2011 को आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में साफ कर दिया गया कि हिमाचल प्रदेश चंडीगढ़ में 7.19 फीसद हिस्सेदारी का हकदार है।

हर सरकार के समय में इस हिस्से की बात उठती रही है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जब आया तो हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल की सरकार थी। उन्होंने दावा किया था कि यह हिस्से की राशि 4300 करोड़ के आसपास बनती है जिसे दिया जाना चाहिए। वह बड़ी मजबूती के साथ इसे उठाते रहे। कोर्ट के निर्णय का पालन करने की बातें भी उठती रही, मगर हिस्सा नहीं मिला। पूर्व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने भी भाखड़ा नंगल पावर प्रोजेक्ट से तैयार होने वाली बिजली में हिस्से का दावा जताया था। उन्होंने भी चंडीगढ़ में अपना हिस्सा मांगा था मगर बात नहीं बनी।

अब प्रदेश में कांग्रेस के सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार बनी है। उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने बड़ी मजबूती के साथ इसे उठाया और बाकायदा चंडीगढ़ में हुए एक कार्यक्रम में इस दावे को मजबूती से रखा। इधर, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने साफ कर दिया है कि चंडीगढ़ में अपना हिस्सा लेकर रहेंगे।

उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार पड़ोसी राज्यों के साथ हिमाचल के अधिकारों से संबंधित सभी लंबित मुद्दों का सर्वमान्य हल समाधान निकालने के लिए मजबूती से कदम उठाएगी। प्रदेश को 7.19 हिस्से से वंचित रखना अन्याय है। उन्होंने यहां तक कहा कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड यानी बीबीएमबी की विद्युत परियोजनाओं में बढ़ी हुई हिस्सेदारी भी प्रदेश को चाहिए।

यहां तक कि सरकार बिजली हिस्सेदारी में जो बकाया है उसे वसूलने के लिए भी विकल्प की तलाश कर रही है। यही नहीं मुख्यमंत्री ने प्रक्रिया को तेज करने की लिए एक मंत्रिमंडलीय समिति का भी गठन कर दिया है।

मुख्यमंत्री ने हैरानी जताई कि बीबीएमबी की परियोजनाओं से विस्थापन का दर्द हिमाचल झेल रहा है, हिमाचल की धरती पर यह परियोजनाएं चल रही हैं मगर इसका लाभ दूसरे राज्य ले रहे हैं। अपने ही हिस्से के लिए हाथ फैलाना पड़ रहे हैं।अब देखना यह होगा कि वर्तमान में संबंधित राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हैं और इनके बीच यह मामला फंसा हैं।

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस, पंजाब में आम आदमी पार्टी, हरियाणा में भाजपा की सरकार है तो चंडीगढ़ केंद्र के अधीन है। हिमाचल के सभी दलों को दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर अपने इस हिस्से को लेने की पहल करनी चाहिए और केंद्र से भी दबाव बनाया जाना चाहिए।