यमुना खतरे के निशान से ऊपर, और ऊपर, और ऊपर। हरियाणा ने हथिनी कुंड से पानी छोड़ा… एक कहिन कि यह हरियाणा सरकार की कारस्तानी है, लेकिन घुटने तक पानी में खड़ा एक बंदा बोला कि सब कुदरत का कहर है! सरकारों ने कोई तैयारी नहीं की! चैनल ‘अतिशयोक्ति’ अलंकार लगाते रहे कि ‘दिल्ली डूबी’, कि ‘राजधानी डूबी’ कि ‘यमुना का कहर’, कि ‘पानी का प्रलय…’, कि ‘यमुना खादर खाली कराया’।
हर चैनल पर ‘पानी का प्रलय’ दिखाने की प्रतियोगिता। हर एंकर का दावा कि देखिए, हमारे रिपोर्टर दस जगहों से पानी का प्रलय दिखा रहे हैं! ‘प्रलय’ भी ‘अवश देखिए देखन जोगू’ वाला दृश्य था!

एक रिपोर्टर लाल किले के पिछवाड़े, गर्दन तक पानी में डूबा, हांफते हुए बताता रहा कि पानी का बहाव बहुत तेज है, आप जरा से डगमगाए और गए… आप उसे देख कर डरते हैं… लेकिन न चैनल को परवाह, न उसे। उसे तो पानी में रह कर ही लोमहर्षकता को बढ़ा-चढ़ा कर बताना है! उसे नौकरी जो करनी है! बहुत से तमाशबीन वीडियो भी बनाते दिखते रहे। वे ‘प्रलय’ का भी ‘पर्व’ मनाते रहे।

उधर नेताजन एक-दूसरे पर आरोप लगाते दिखते हैं कि उनकी वजह से यह हुआ कि इनकी वजह से यह हुआ! साथ ही उत्तराखंड और हिमाचल में तेज बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से रास्ते बंद होने की खबरें भी पूरे दिन छाई रहीं। रिपोर्टर बताते रहे कि ये देखिए, ये मकान ऐसे गिरे, कि अमरनाथ यात्री फंसे।…

इधर यह ‘प्रलय’ था, तो उधर पटना में भाजपा की ‘विरोध रैली’ थी। साथ में ‘लाठीचार्ज’ भी था। एक ओर पुलिस की लाठी थी और दूसरी ओर पिटते, गिरते, भागते भाजपा वाले थे। शाम तक खबर आई कि भाजपा के एक नेता की मृत्यु हुई है। मरा नेता एक बार फिर बहसों में मरा। मौत की खबर आते ही तर्कों की तलवारें खिंच गईं।

आहत पक्ष कहता कि नेता को लक्ष्य करके मारा गया, तो प्रशासन के हवाले से प्रवक्ता कहता कि कोई चोट नहीं लगी बताई गई। यानी कि वे अपने आप ही मरे हैं। ऐसा सुनते ही सवाल हुआ कि बिना पोस्टमार्टम के फैसला कैसे दे दिए? एक प्रतिपक्षी ने आरोप लगाया कि यह सब बंगाल का असर है। आखिर विपक्षी दल पटना में ही मिले थे न!

लेकिन, बंगाल में तो ‘लोकतंत्र’ बचाया जा रहा था। जितने वीडियो दिखे, सर्वत्र ‘बम ही बम’ दिखते। कइयों के हाथों में पिस्तौल या राड, लाठियां दिखतीं। आगजनी दिखती। खून दिखता। लोग रोते-बिलखते दिखते। ‘सर्वाधिक हिंसक’ कहे जाते इन पंचायत, जिला परिषद चुनावों के नतीजे के दिन भी कुछ लोग मरे।

नतीजों में सत्ता दल ने ‘धो’ दिया! विपक्ष बुरी तरह हारा। विजयी पक्ष बोला कि पराजित पक्ष की ‘खिसियानी बिल्ली’ अगर ‘खंभा नोंच रही’ है तो नोंचती रहे। फिर होता रहा कि पैंतालीस मरे या पचास मरे, लेकिन तुलना भी हुई कि ‘उस बरस’ इतने मरे थे, जबकि ‘इस बरस’ इतने मरे। तुलनात्मक अध्ययन उत्तम कार्य! तुलनात्मक अध्ययन करने से दुख कम होता है। जो मरे वे ‘गुंडे’ होंगे। लोकतंत्र को बचाने की चुनौती छोटी नहीं! अंत में लोकतंत्र तो बचा!

बचे हुए लोकतंत्र को लेकर एक एंकर ट्विटर वीरों को उलाहना देता रहा कि ‘लोकतंत्र खतरे में है’ वाले आज कहां गए? लोकतंत्र की हत्या हो रही है, लेकिन ‘ट्विटर बास’ चुप हैं। क्यों?

किसी ‘स्थायी राग’ की तरह ‘यूसीसी’ चैनलों में बजता रहा। एक चैनल एक सर्वे जैसा देकर बताता रहा कि अठहत्तर फीसद मुसलिम औरतें यूसीसी चाहती हैं। एक वकील बताते रहे कि तलाक, पुनर्विवाह, उत्तराधिकार, गोद लेना आदि सबके लिए एक कानून हो। बाकी, सबके ‘धार्मिक आचरण’ अपनी जगह रहें!

मगर ‘यूसीसी निंदकों’ की स्थिति विचित्र दिखी। पहले कहते कि यह ‘अल्पसंख्यकों’ को निशाना बनाने के लिए लाया जा रहा है। चौबीस के लिए लाया जा रहा है। फिर कहते कि अगर लाना है तो वे नीचे से ऊपर से लाएं, ऊपर से नीचे न लादें। यानी वही ‘कभी हां कभी ना’! फिर एक दिन अनुच्छेद 370 को लेकर बड़ी अदालत में सुनवाई जारी रहने की खबर! और निंदक खुश कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे!

इसी बीच ‘मुसलिम विश्व लीग’ के एक नेता ‘अल इस्सा’ द्वारा भारत आकर भारत की तारीफ करना कि भारत सह-अस्तित्व का माडल है। भारतीय होने में मुसलमान गर्व करते हैं… और निंदावीर चुप! फिर एक दिन आनलाइन ‘पबजी गेम’ (यानी जुआ) खेलने वाले एक युवक की निंरतर हिलती-कांपती देह देख डर लगा कि ‘पबजी’ ने उसके साथ ये क्या किया? किस्सा यह कि ‘पबजी’ खेलते हुुए वह बहुत-सा पैसा हार गया। घर वालों ने खेल बंद करा दिया, तो उसे दौरे पड़ने लगे। इसी बीच सरकार ने आनलाइन गेम की रकम पर अट्ठाईस फीसद आयकर लगा दिया! एक सत्तापक्षी बोला, यह तो ‘प्रतिबंध’ लगाना हुआ! क्या गलत किया?

इधर पीएम के फ्रांस दौरे की खबरें छाई रहीं। पीएम का प्रवासियों से बात करना, फिर फ्रांस का उच्चतम सम्मान ग्रहण करना, फिर मैत्री के महत्त्व पर बात करना आदि के साथ, कुछ रफाल और कुछ पनडुब्बियों के सौदे की खबरें आती रहीं! फिर एक चैनल पर एक एंकर ने बताया कि यूसीसी को लेकर विधि आयोग के पास अब तक ‘छियालीस लाख’ सुझाव आए हैं, लेकिन बहसों में विरोधियों के ‘किंतु परंतु’ जारी ही रहे!