सब चैनल अयोध्यामय, मंदिरमय, राममय और सब कुछ लाइव लाइव जैसे कलयुग में त्रेता दर्शन! एक से एक भजन। दूर- दूर से आते तीर्थ यात्रियों के भाव विह्वल उद्गार और भजन। जै श्रीराम के नारे, जै सियाराम के नारे। भक्त कहिन कि साढ़े पांच सौ बरस बाद रामलला अपने जन्म स्थान पर बिराजेंगे! उनकी प्राण प्रतिष्ठा हम अपनी आखों से देखेंगे।
हमारे अहो भाग्य! एक से एक कहानी- ढांचा टूटने की कहानी, कारसेवकों की कुर्बानियों की कहानियां, गोली चलवाने वालों की कहानी और बहसें। एक ओर हिंदू, हिंदुत्व और सनातन मन, दूजी ओर धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी। हर बहस में तीखी तकरार। मस्जिद मुकादम इकबाल अंसारी और बहुत से बाबा मंच पर। एक बाबा कि राम सबके हैं। दूजे बाबा कि जिन्होंने विरोध किया उनको कैसे भुलाएं। विचलित एंकर कहिन कि अब तो शुभ- शुभ बोलिए सब लोग। एक ओर मंदिर के लिए साढ़े पांच सौ वर्ष लंबा संघर्ष। कोर्ट से जीत। मंदिर निर्माण। अब प्राण प्रतिष्ठा समारोह की शुभ घड़ी। राम भक्त गदगद। राम भक्त मस्त बाकी सब पस्त!
एक चैनल तुरंत सर्वे करा देता है कि मंदिर उद्घाटन कितना सांस्कृतिक, कितना राजनीतिक और कितना धर्मिक। जवाब में 22 फीसद के लिए ‘सांस्कृतिक’, 27 फीसद के लिए ‘राजनीतिक’ और 45 फीसद के लिए ‘धार्मिक’ और इसे शुभ मानने वाले 87 फीसद! इस बीच बिलकिस बानो के बलात्कारियों को छोड़ने के फैसले को निरस्त करने का बड़ी अदालत का फैसला आता है। मंदिरवादी भक्तिपर्व के ‘अखंड आख्यान’ को झटका लगता है। हर चैनल पर है रेप व हिंसा पीड़िता बिलकिस बानो की कहानी। कुछ पर वह स्वयं अपनी कहानी कहती है और हर चैनल पर बलात्कारियों को छोड़ने व पूजने के प्रति धिक्कार बरसता है।
जैसे ही बंगाल में राशन के एक बड़े घोटालेबाज को पकड़ने गए ईडी अधिकारियों पर वहां की भीड़ हमला करती है, बिलकिस बानो की कहानी किनारे हो जाती है और मंदिर की कहानी फिर केंद्र में आ जाती है। इसी बीच, प्रधानमंत्री लक्षद्वीप में ‘स्कूबा डुबकी’ लगाते हैं। तट पर टहलते हैं और लक्षद्वीप नए देशज पर्यटन स्थल के रूप में मीडिया में हाइप पाने लगता है।
उधर कुछ बालीवुड हीरो मालदीव के प्रति क्रिटीकल हो उठते हैं और उसका टूरिज्म बैठने लगता है। अकड़े मालदीव को तीन मंत्रियों को उनकी भारत के प्रधानमंत्री के प्रति बदजुबानी के लिए हटाना पड़ता है। ये है भारत का पव्वा! मंदिर की कहानी फिर जोर मारती है। चैनलों में लाइनें हैं : 2024 के लिए भाजपा का प्लान ‘एफ’ यानी ‘फर्स्ट वोटर’ को मंदिर से जोड़ना व ‘संघ समन्वयक’ का हर लोकसभा सीट पर सक्रिय रहना। फिर खबर कि सबसे बड़े विपक्षी दल ने ‘निमंत्रण’ को ‘सम्मानपूर्वक अस्वीकार’ किया। मंदिर की कहानी और भी जोर शोर से लौटती है कि यह भाजपा संघ का कार्यक्रम। हम नहीं जाने वाले।
बहसें गरमाती रहती हैं। भक्त अभक्त सब मानस की चौपाइयां उद्घृत करते हुए भिड़ते रहते हैं। एक भक्त कटाक्ष करता है कि बायकाटियों को अपने पाप धोने का मौका गंवा दिया, कि ये जाते भी तो किस मुंह से जाते ये तो राम का अस्तित्व ही नहीं मानते। और एक भक्त ने तो यह तक कह दिया कि अच्छा ही है कि नहीं आ रहे। आते तो वहां कांड करते। एक अंग्रेजी रामकथा लेखक ने अयोध्या में पर्यटन के बढ़ने से अर्थव्यवस्था के बढ़ने की बात कही।
इसी बीच, महाराष्ट्र की विधानसभा के अध्यक्ष द्वारा शिवसेना में ‘कौन असली कौन नकली’ का फैसला सुनाया कि ‘शिंदे शिवसेना’ ही असली शिवसेना है। शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे! शिंदे भक्त मस्त! विपक्षी अपील की तैयारी में! मंदिर के ट्रस्ट द्वारा दिए जाते निमंत्रण पत्र व अक्षत और विपक्ष का रूठ मटक्का। एक कहिन कि बुलाएंगे तो जाएंगे। जब बुलाया तो कहने लगे कि ये तो भाजपा व संघ का राजनीतिक कार्यक्रम है। इसमें हम क्यों जाएं, इसका बायकाट बायकाट। एक भक्त ने मानस की एक सटीक चौपाई जड़ी : ‘सकल पदारथ है जग माहीं! कर्महीन नर पावत नाहीं!!’
एक विपक्षी प्रवक्ता कहते रहे कि हमारे नेताजी ने भी कुछ तय नहीं किया है। फिर खबर आई कि नेताजी बाईस को अपने पूर्व निर्धारित कामों में बहुत बिजी हैं। एक विपक्षी नेता कहिन कि हम उनका निमंत्रण लेते हैं, जिनसे परिचय हो। बायकाटियों को लेकर एक एंकर ने खुश होते हुए कहा, मैंने कहा था न कि ये मंदिर विरोधी लोग बायकाट करेंगे ही!
एक एंकर बोला कि ‘बायकाट’ की वजह से विपक्ष के सबसे बड़े दल में बगावत के आसार हैं, क्योंकि उसके कई नेता मंदिर जाने की बात कह रहे हैं। एक आचार्य जी ने तो साफ कहा कि बायकाट करना उचित नहीं, राम सबके हैं। सच मोदी से निजी नफरत के कारण ये ‘सेकूलर’ सीधे भगवान राम से ही भिड़ गए लगते हैं। एक एंकर ने उनको भी आड़े हाथों लिया जो प्रधान न्यायाधीश के मंदिर जाने को लेकर उनको ट्रोल करते रहे। कहा भी है : सकहि न राखि राम कर द्रोही।