टूट-फूट हुई महाराष्ट्र में, लेकिन हिलने लगा पटना! कई चैनल देर तक ‘पटना’ को हिलाते रहे। कहते रहे कि अब ये टूटे कि ये फूटे कि इतने एमएलए उनके संपर्क में कि इनके संपर्क में।… इस टूट-फूटवादी राजनीति के समय में कुछ भी हो सकता है।
महाराष्ट का झटका जब आया तो पूरे फिल्मी तमाशे के साथ आया। सभी खबर चैनल बेहद व्यस्त। हर एक के पास एक ही सवाल कि अब तेरा क्या होगा शिंदे, और शिंदे जी कहें, हमें कोई खतरा नहीं!
एक से एक टीका-टिप्पणी कि आज भतीजे जी ने चाचा को निपटाया, तो कभी चाचा ने भी दादा को निपटाया था।… भाषण में भतीजे जी बोले कि चाचा कब तक अटके रहोगे यानी अब जाओ भी चाचा जी।…
चैनलों में कुछ ज्ञानी ज्ञान बांटते रहे कि सब चौबीस के लिए हो रहा है
और एक से एक तेजाबी हमले कि ‘मेरे पिता पर हमला नहीं… उम्र सिर्फ एक नंबर है, कि वे कहते थे न खाऊंगा न खाने दूंगा, अब देखती हूं कैसे खाओगे, कि ये तो पूरी पार्टी ही खा गए, कि ये ‘आपरेशन लोटस’ पहले शिवसेना में हुआ, अब एनसीपी में हुआ, कि भाजपा सबसे बड़ी ‘वाशिंग मशीन’! चैनलों में कुछ ज्ञानी ज्ञान बांटते रहे कि सब चौबीस के लिए हो रहा है और जब कोई भाजपा वाले से पूछे तो वही मासूमियत से भरा जवाब कि वे खुद ही टूट रहे हैं, हम क्या करें।
उधर चाचा बोले कि फिर से पार्टी खड़ी करूंगा… एक वक्त का खाना खाऊंगा… ये गुगली नहीं डकैती है। फिर इस टूट-फूट में बहुतों को फिल्म ‘बाहुबली’ के ‘कटप्पा’ और ‘बाहुबली’ दिखने लगे। फिर एक दिन एक ही साथ चाचा भतीजे की जनसभाएं हुईं। भतीजे की ओर उनतीस विधायक दिखे और चाचा जी की ओर सोलह विधायक ही दिखे। भतीजे जी आगे, चाचा जी पीछे!
इतनी टूट-फूट के बावजूद भतीजे जी अपने फोटो के साथ चाचा के फोटो को भी चिपकाए रहे और भक्त भी कहते रहे कि वो हमारे भगवान हैं… बताइए ऐसे भक्तों के आगे भगवान भी क्या करें? फिर एक शाम केरल के गवर्नर ने एक चैनल पर ‘यूसीसी’ के संदर्भ में कहा कि बहुत से कानून ऐसे हैं, जो कुरान के अनुसार नहीं हैं, ये बादशाहों के लिए बनाए गए थे।
इस बीच फ्रांस पूरे पांच दिन तक फुंकता रहा। हम फुटेज देखते रहे। एक चैनल पर एक फ्रांसीसी पत्रकार किसी ‘क्षमाप्रार्थी’ की तरह बोलता रहा कि यह गुस्सा शरणार्थियों के प्रति किए जा रहे कालोनियल शोषण और तज्जन्य भेदभाव का परिणाम है, तो समझ आया कि फ्रांस क्यों ‘पिटनशील’ है!
एक चर्चक ने जवाब दिया कि अब तक फ्रांस ने अपना ‘उदारतावादी चेहरा’ बेचा, अब कैसे कहे कि वह अनुदार है! फिर एक चर्चा में विशेषज्ञ ने तर्क किया कि यों तो हम भी अंग्रजों की कालोनी रहे हैं, तब भी क्या हम ऐसा करते हैं कि एक मर जाए तो आगजनी करने लगें, लूटने लगें… कुछ खास लोग ही हिंसा क्यों करते हैं?
लेकिन, हमें अभी अपने हिस्से की शर्म के लिए शर्मसार होना था, क्योंकि खबर चैनलों में पूरे दिन वह वीडियो दिखता रहा कि जिसमें मध्य प्रदेश के ‘सीधी’ जिले के एक इलाके में एक दबंग युवक एक बैठे हुए आदिवासी व्यक्ति के ऊपर पेशाब करता रहा और वह चुपचाप सहता रहा।
खबर सचमुच गहरा क्षोभ पैदा करने वाली रही और सीएम को कहना पड़ा कि उस पर ‘एनएसए’ लगाया जाए, फिर उस ‘अपराधी’ के घर पर बुलडोजर भी चलवाया, फिर आहत आदिवासी को बुलाकर उसके पांव पखारे, उसको माला पहनाकर उससे माफी मांगी और यह सब चैनलों में प्रसारित भी हुआ!
और वह आदिवासी जिस तरह से उस युवक की बदतमीजी के आगे चुप रहा, माला पहनते हुए भी चुप रहा। यह चुप हम सबको शर्मिंदा करने के लिए काफी था। उसकी चुप्पी हमारी शर्म पर भारी थी। फिर भी विपक्ष कटाक्ष किए बिना न माना कि उसे सुदामा बनाकर वे खुद कृष्ण बन गए। ये मामा का ड्रामा है चुनाव जो हैं।
एक चैनल ने फिल्म ‘72 हूरें’ पर चर्चा कराई। निर्माता बोले कि हमने ‘आतंकवादी’ और ‘जिहादी मानसिकता’ को उजागर किया है। किसी समुदाय को निशाना नहीं बनाया। समुदाय वाले फिर भी कहते रहे कि ये भी कश्मीर फाइल्स, केरल स्टोरीज के क्रम में मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए बनाई गई है। फिर एक दिन ‘मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड’ के प्रवक्ता कहिन कि हम यूसीसी को स्वीकार नहीं कर सकते। पीएम से मिलेंगे। अन्य दलों से मिलेंगे।
इसके बाद तो बहसें होनी ही थीं। एक चैनल ने लाइन लगाई कि नेता, बुद्धिजीवी, मुसलमान सबका कहना है कि यह यूसीसी हिंदू राष्ट्र का रास्ता है। एक नोबेल ब्रांड दादा जी बोलिन कि यूसीसी हिंदू राष्ट्र से जुड़ा है। फिर एक सीएम जी कहिन कि यूसीसी के बहाने ‘सनातन’ को लादा जा रहा है। बहरहाल, एक बहस में एक वकील जी ने साफ किया कि यह सभी महिलाओं को समान हक देने के लिए है, बाकी सबके अलग-अलग पूजा-पाठ, रीति-रिवाज, रहन-सहन, भाषा-संस्कृति और उत्सव आदि सबकी आजादी रहेगी। एक ने बताया कि आदिवासी इसके बाहर रहेंगे।
अपने विपक्ष का भी कोई क्या करे? जब ‘यूसीसी’ का मसविदा नहीं, तो इतनी ‘हाय हाय’ है, मसविदा होगा तो कितनी ‘हाय हाय’ न होगी! और फिर अपने भैया जी भी क्या करें! संसद सदस्यता खत्म करने की सजा के खिलाफ उनकी अपील गुजरात हाई कोर्ट ने ठुकरा दी! अब एक ही रास्ता है: ‘सुप्रीम कोर्ट शरणम् गच्छामि’!