कुंदन कुमार
आमतौर पर लोगों की ऐसी धारणा है कि लोगों के सफल होने में परिवेश निर्णायक भूमिका अदा करता है। यह पूरी तरह नहीं तो आधा सच जरूर है। परिवेश निश्चित ही हमारी मानसिकता को प्रभावित करता है, लेकिन इसे हम अपने हिसाब से खुद के लिए समायोजित कर सकते हैं। कुछ समय पहले सिविल सेवा और अन्य परीक्षाओं का परिणाम घोषित किया गया। आर्थिक और सामाजिक स्तर से पिछड़े कई अभ्यर्थियों की कहानी इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच से झोपड़ी में भी सफलता का दीपक जलाया जा सकता है।
लोगों की ऐसी सोच है कि गांव देहात में संसाधन और परिवेश ऐसा नहीं है जिसकी बदौलत प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता प्राप्त की जा सके। इसलिए उच्च प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होने की लालसा पाले लाखों अभ्यर्थी छोटे गांव, कस्बों और शहरों से दिल्ली जैसे महंगे शहरों की ओर पलायन को मजबूर हैं।
उन्हें लगता है कि दिल्ली और पटना के कुछ खास इलाके उनकी जिदंगी को संवार देंगे! लेकिन शहरों की चकाचौंध तथा आरामदायक जीवनशैली में अक्सर वे भूल जाते हैं कि वे किस उद्देश्य से घर-परिवार से दूर अजनबियों के शहर में अपना एक अलग पहचान बनाने आए हैं।
जिस परिवेश की तलाश में वे अपना घर त्याग देते हैं, वैसा परिवेश उन्हें ढूंढ़ने पर भी शहरों में नहीं मिलता! वहीं सफलता की तलाश में गांव की पगडंडियों को छोड़ अजनबी शहर में पलायन करने वाले कुछ ऐसे विद्यार्थी भी होते हैं, जो सकारात्मक सोच, दृढ़ इच्छाशक्ति और मजबूत संकल्प की पोटली घर से बांध कर लाते हैं। फिर लाख दुश्वारियों के बावजूद वे खुद के लिए उपयुक्त परिवेश का निर्माण कर लेते हैं, जो उन्हें सफलता के द्वार तक आसानी से पहुंचाए!
छोटे गांव में रहने वाले एक विद्यार्थी ने एक प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रवेश परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया! साक्षात्कार के क्रम में उसने बताया कि उसके शहर में परीक्षा की तैयारी के लिए कोई कोचिंग सेंटर नहीं था और परीक्षा से कुछ समय पहले महामारी के चलते पूरे भारत में पूर्णबंदी लग गई थी। ऐसे विपरित समय में उसने आॅनलाइन शैक्षणिक प्लेटफार्मों का सदुपयोग किया और यूट्यूब पर उपलब्ध शैक्षणिक सामग्रियों से पढा़ई कर शीर्ष स्थान प्राप्त करने में सफल रहा।
आधुनिक जमाना तकनीक का है। तकनीक का प्रयोग कर दुनिया की सारी जानकारी को मुट्ठी में किया जा सकता है। लेकिन तकनीक पर बहुत सारे बेमतलब की समग्रियां या ठिकाने भी हैं, जो सफलता के मार्ग के सबसे बड़े अवरोधक हैं। सफलता की कसौटियों में अनुशासन और नियमित अभ्यास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जीवन में सफलता प्राप्त करने वाले व्यक्ति खुद को कड़े अनुशासन के दायरे में सीमित रखता है।
अनुशासन की परिधि से बाहर रह कर सफलता की चाहत मृग मरीचिका की तरह ही मिथ्या प्रतीत होती है। कठिन साधना और कड़े अनुशासन के बंधनों में खुद को बांध कर ही एकलव्य धनुर्विद्या सीखने में सफल रहा था। अनुशासित जीवन हमें व्यभिचार से दूर रख हमारे विचारों को भी परिष्कृत करती है। नियमित अभ्यास के अभाव में सीखी हुई विद्या हम भूल जाते हैं। क्रिकेट या अन्य खेल के खिलाड़ी नियमित अभ्यास इसलिए करते हैं, ताकि मैदान पर वे अपना लय बरकरार रख सकें।
कड़ा अनुशासन और नियमित अभ्यास के अलावा सफलता की एक महत्त्वपूर्ण कसौटी है कठिन साधना। सफलता रुपी पथिक के पथिकों का पर्व-त्योहार भी सफलता ही है। पर्व-त्योहार के मौसम में भी कठिन साधना उन्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं करती है। वे त्योहार भी मनाते हैं तो उसका रंग ‘सफलता का रंग’ होता है। उनका पर्व भी ‘सफलता का पर्व’ होता है।
सकारात्मक सोच की प्रवृति हमारे मनोदशा की दिशा तय करती है। सफलता के लिए सकारात्मक सोच की प्रवृत्ति को खुद के अंदर विकसित करना बेहद जरूरी है। जरुरी नहीं है कि अनुशासन, नियमित अभ्यास और कठिन साधना की बदौलत एक बार में ही हम सफल हो जाएं।
सिविल सेवा जैसे कठिन प्रतियोगी परीक्षा में बहुत कम ऐसे विद्यार्थी होते हैं जो पहली बार में ही सफल होते हैं। इसलिए सकारात्मक सोच जीवन के हर क्षेत्र में जरूरी है। सकारात्मक सोच वाले लोग अपने पराजय को भी सकारात्मक नजरिए से देखते हैं और पराजय से सीख लेते हुए अपने लिए जीत का रास्ता तैयार करते हैं। वहीं नकारात्मक सोच वालों को अपनी जीत में भी हार नजर आती है और वे आजीवन संसाधनों का रोना रोते फिरते हैं।
सच्चाई यह है कि सकारात्मक नजरिया अपनाकर संसाधनों के अभाव में कठिन साधना की बदौलत लोगों ने एक दृष्टांत समाज में पेश किया है। सकारात्मक सोच की बदौलत ही सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे सिविल सेवा जैसे परीक्षा में सफल होने का संकल्प ले लेते हैं और कठिन परिश्रम की बदौलत अपने संकल्प को सफलता में भी परिणत करते हैं।