आखिरकार राहुल गांधी की घरवापसी हो ही गई। संसद में भी वापसी और अपने पुराने सरकारी मकान में भी। जब उनको इन दोनों जगहों से निकाला गया था गुजरात हाई कोर्ट में मानहानि मामले में दोषी पाए जाने के बाद, तब मुझे लगा कि उनको चौबीस घंटों में संसद से निकाल देना गलत था और इस गलती को लेकर मोदी सरकार सिर्फ यह साबित करेगी कि गांधी परिवार के इस वारिस से उनको थोड़ा डर लगने लगा है। बार-बार आज भी कहते फिरते हैं भारतीय जनता पार्टी के मोदीभक्त किस्म के सांसद कि राहुल गांधी अभी ‘बच्चे’ हैं, ‘पप्पू’ हैं, ‘जोकर’ हैं।
इन सब चीजों को अगर मान भी लिया जाए, फिर भी वही सर्वेक्षण जो बताते हैं कि मोदी विश्व के सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं, वे भी कहते हैं कि मोदी को अगर कोई भारतीय राजनेता चुनौती दे सकता है अगले साल, तो वो हैं राहुल गांधी। एक तो उनको विरासत में मिली है भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी और विरासत में मिला है, एक ऐसा नाम, जो भारत में बच्चा-बच्चा जानता है।
यथार्थ यह भी है कि अपने प्रिय भारत देश में जिस परिवार से सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री रहे हैं, वह राहुल गांधी का परिवार है। तो क्यों न मोदी को लगे कि एक दशक के शासनकाल के बाद अगर मतदाता विकल्प ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं अगले साल, तो उनकी नजर वर्तमान स्थिति में पड़ेगी एक बार फिर गांधी परिवार पर। याद रखिए कि इस परिवार का इतना सम्मान है भारतवासियों की नजरों में कि सोनिया गांधी को भी अघोषित प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने स्वीकार कर लिया था।
सो, राहुल क्यों नहीं? विपक्षी दल बहुत हैं अपने देश में, लेकिन जो राजनेता इन दलों की अगुआई कर रहे हैं, वे भी तकरीबन सब राहुल की तरह किसी राजनीतिक परिवार के वारिस हैं। ऊपर से, वे सारे क्षेत्रीय दल हैं, राष्ट्रीय नहीं। इसलिए अगर ‘इंडिया’ गठबंधन जीतता है 2024 में, तो उसका नेतृत्व पहले राहुल गांधी को सौंपा जाएगा और उन पर छोड़ दिया जाएगा कि वे उसको स्वीकार करने को तैयार हैं कि नहीं।
मैं इतना कहना चाहती हूं कि लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए मजबूत विपक्ष बहुत जरूरी होता है, वरना सत्तापक्ष में लोग घमंडी और स्वार्थी होने लगते हैं, इतने कि उनके पांव जमीन पर पड़ने बंद हो जाते हैं। पिछले सप्ताह अविश्वास प्रस्ताव पर बहस अगर आपने सुनी होगी, तो आप भी जान गए होंगे कि ऐसा अभी से हो गया है। मसलन, जिस अहंकार और घमंड से स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी पर हमला किया था, वह हैरान करने वाला था। अपने आप को वे शेरनी समझती हैं, लेकिन अक्सर जिन मुद्दों पर उन्होंने हमला किया, वे इतने फिजूल थे कि न करतीं तो बेहतर होता।
मगर, राहुल गांधी का संसद में वापस आने के बाद पहला भाषण सुन कर मुझे गहरी मायूसी हुई। बात मणिपुर की होनी चाहिए थी। मणिपुर को लेकर ही अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन उन्होंने अपना भाषण शुरू किया ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की बात करके और एक बार फिर अडाणी का नाम लेकर। क्यों?
इन चीजों से क्या वास्ता था इस बहस का? फिर जब मणिपुर की बातें कीं, तो उन्होंने दो महिलाओं से अपनी बातचीत पर इतना समय बिताया कि वहां तक पहुंच ही नहीं पाए कि कांग्रेस शासन चला रही होती, तो मणिपुर की समस्या का समाधान कैसे करती। न उनकी तरफ से सुझाव आए और न मुझे उनकी बातों में वह अकलमंदी दिखी, जिसकी मैं उम्मीद कर रही थी। फिर जब उन्होंने कहा कि भारत एक आवाज है, मैंने हार मान ली। भूल गए क्या कि जब अपने देश को मधुमक्खी का छत्ता कहा था, कितना मजाक उड़ाया था मोदी ने?
राहुल गांधी इन दिनों दिखते हैं हमेशा आम आदमियों के बीच। कभी धान के खेत में पहुंच कर खेती करने का ढोंग करते हैं, तो कभी सब्जी मंडी में सब्जियों के दाम पूछते दिखते हैं। अमेरिका जब गए कुछ महीने पहले, तो दिखे एक ट्रक चालक के साथ लंबा सफर करते हुए। जहां भी जाते हैं आम लोगों से मिलने, उन सबका वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर डाल दिया जाता है। एक वीडियो में मैंने देखा कि जिन महिलाओं के साथ उन्होंने धान बोने की कोशिश की थी, उनको उन्होंने अपनी माताजी के घर बुलाया पूरे परिवार के साथ भोजन करने।
बहुत अच्छी बात है कि राहुल आम लोगों से मिलते हैं, लेकिन क्यों लगता है कि अब भी वे उनके बारे में जानने के प्रयास में लगे हुए हैं? इतने साल राजनीति में रहने के बाद क्या अब भी उनका प्रशिक्षण चल रहा है? क्या समय नहीं आ गया है असली नेतृत्व दिखाने का? असली नेतृत्व यानी नीतियों की बात करके, आर्थिक दिशा की बात करके, राजनीतिक परिवर्तन की बात करके। काफी नहीं है यह कहना कि नफरत के बाजार में वे मोहब्बत की दुकान खोलना चाहते हैं।
इरादा नेक जरूर है, लेकिन अगर वास्तव में इस इरादे पर अमल करना चाहते हैं राहुल गांधी, तो क्यों नहीं दिखते हैं नूंह शहर में, जहां अभी-अभी दंगे होने के बाद मुसलमानों के मकान तोड़े गए हैं? क्यों नहीं आवाज उठाते उस बुलडोजर न्याय के खिलाफ, जिसने देश की न्याय प्रणाली को मजाक बना दिया है? क्यों नहीं कभी ऊंची आवाज में कहते हैं कि लोकतंत्र की बुनियाद है न्याय व्यवस्था और इस न्याय व्यवस्था को बर्बाद कर रहे हैं भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री अपने बुलडोजर चला कर? ऐसा लगता है राहुलजी, कि अब भी आपका प्रशिक्षण बाकी है।