भारत और अमेरिका- अफगानिस्तान के मुद्दे पर परस्पर सहयोग चाहते हैं। दोनों ही देश सामरिक मामलों में लगभग एक समान राष्ट्रीय हितों को साझा करते हैं। इनमें अफगानिस्तान को अराजकता की चपेट में जाने से रोकना, मानवाधिकारों की रक्षा और आतंकवाद विरोधी रणनीति पर समन्वय जैसे मुद्दे हैं। दोनों देशों ने तालिबान से मानवाधिकार और महिला अधिकारों के सम्मान की मांग की है। आतंकवाद को बढ़ावा या शरण देने से रोकने को कहा। इस मुद्दे पर अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि ने भारत के वरिष्ठ राजनयिकों के साथ उच्च-स्तरीय बैठक की है। इन घटनाक्रमों के मद्देनजर अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्जे के बाद दो जून 2022 को भारत की तरफ से पहली बार वहां का आधिकारिक दौरा किया गया।
समावेशी सरकार की दरकार
तालिबान से सीधे तौर पर जुड़कर भारत, अफगानिस्तान में एक स्थायी और समावेशी सरकार को बढ़ावा देने की कवायद में जुटा है। जून 2021 से शुरू करके भारत ने कई मौकों पर तालिबान के अलग-अलग नेताओं के साथ बातचीत की है, उन्हें भारतीय हितों और संवेदनशीलता का सम्मान करने को कहा है। इस साल मई में भारत काबुल के भीतर अपने दूतावास को फिर से खोलने के विकल्पों का पता लगा रहा था ताकि अफगानिस्तान की विकास और मानवीय ज़रूरतों में बेहतर ढंग से मदद दी जा सके। जून 2022 में भारतीय अधिकारियों के लारा अफगानिस्तान में भारत की परियोजनाओं और उपक्रमों का दौरा किया गया और तालिबान को संकेत दिया गया कि परंपरागत आर्थिक, मानवीय और विकास से जुड़ी सहायता जारी रह सकती है।
अमेरिका का संकट
वहां दो दशक बिताने और कई खरब डालर खर्च करने के बाद अमेरिका इस बात का खतरा नहीं उठा सकता कि अफगानिस्तान एक नाकाम देश बने। एक नाकाम देश के रूप में अफगानिस्तान बड़ी शक्ति कहे जाने वाले अमेरिका के दर्जे को खोखला कर सकता है। साथ ही दुनिया भर में मानवाधिकार को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा करने की अमेरिका की क्षमता को भी कमजोर कर सकता है। इसलिए अमेरिका की इच्छा है कि पिछले दो दशकों में उसने अफगानिस्तान में जिन क्षेत्रों में बढ़त हासिल की है, उसे बचा कर रखा जाए।
इनमें मानवाधिकार एवं महिला अधिकार, सामाजिक-आर्थिक विकास, चरमपंथ एवं आतंक से जुड़ी गतिविधियों पर नियंत्रण और क्षेत्रीय स्थायित्व को बढ़ावा शामिल हैं। इन हितों का नतीजा अमेरिका के लारा तालिबान के साथ बातचीत के रूप में निकला है जिससे कि अफगानिस्तान को और ज्यादा मानवीय एवं आर्थिक सहायता दी जा सके। इस तरह की बातचीत अक्तूबर 2021 से चल रही है। इसके बदले में अमेरिका उम्मीद करता है कि तालिबान अफगानिस्तान के नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकलने की इजाजत दे, मानवीय पहुंच को सुधारे, मानवाधिकार एवं महिलाओं के अधिकारों को बनाए रखे, समावेशी सरकार को बढ़ावा दे और आतंक को शरण या बढ़ावा देने से इनकार करे।
चुनौतियां भी सामने
अफगानिस्तान में चुनौतियां भी गंभीर हैं। अतीत में दोनों देशों की नीतियां अफगानिस्तान के लिए अलग-अलग रणनीति होने की वजह से अक्सर एक-दूसरे के समानांतर काम करती थीं। अब प्राथमिक चुनौती पाकिस्तान को लेकर तालमेल बिठाने की है। अतीत में पाकिस्तान के प्रति अमेरिका के प्यार और अफगानिस्तान में भारतीय पहुंच को कम करने की कोशिश दिखी। उग्रवादी गुटों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को पाकिस्तान पोषित कर रहा है। ये गुट अफगानिस्तान में भारत के आतंकवाद विरोधी उद्देश्यों के रास्ते में आ रहे हैं। मौजूदा दौर में भी तालिबान के साथ पाकिस्तान की सीधी बातचीत है। इन आतंकी समूहों को लेकर भारत ने विश्व बिरादरी पर जो दबाव बनाया है, उसका असर दिखने लगा है।
एफटीएफ में पाकिस्तान संदिग्ध सूची में बना हुआ है। ऐसे में वह खुलकर तालिबान पर दबाव नहीं डाल पा रहा। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से भारत ने सक्रिय रूप से क्षेत्रीय भागीदारों के साथ बातचीत की है। भारत ने मध्य एशिया के देशों और रूस के साथ भी बातचीत की है ताकि अफगानिस्तान में चीन की पहुंच का मुकाबला किया जा सके। दूसरी ओर, आतंकवादी गुटों के आपस में जुड़े होने को देखते हुए भारत और अमेरिका के बीच आतंकवाद के खिलाफ सहयोग सीमित रहा है। इसकी वजह ये है कि पाकिस्तान को लेकर नीतियों में सामंजस्य नहीं है। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर भारतीय और अमेरिकी नीति निर्माताओं के बीच अफगानिस्तान में ईरान की भूमिका को लेकर विरोधी विचार हैं। भारत के जहां ईरान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध हैं वहीं अमेरिका के नीति निर्माता ईरान के खिलाफ हैं।
सामरिक हितों का सवाल
भारत और अमेरिका- दोनों देशों ने तालिबान की शासन व्यवस्था वाले अफगानिस्तान में सामरिक हितों को महसूस करना और उन पर काम करना शुरू कर दिया है। अफगानिस्तान को कूटनीतिक मान्यता की संभावना फिलहाल नहीं है, लेकिन दोनों देशों को उम्मीद है कि एक दायरे में अफगानिस्तान के साथ उनकी बातचीत से राष्ट्रीय हितों को हासिल किया जा सकेगा और अफगानिस्तान को पूरी तरह अराजकता की चपेट में जाने से रोका जा सकेगा। भारत के लिए अफगानिस्तान से उत्पन्न होने वाले खतरे चिंतित कर रहे हैं। लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) नांगरहार और कुनार प्रांतों से अपनी गतिविधियां चलाते हैं।
भारत के समुद्री रास्तों और गोल्डन क्रिसेंट (एशिया में अवैध ड्रग के दो प्रमुख हाइवे) के जरिए नशीले पदार्थों एवं हथियारों की जो तस्करी हो रही है, उससे कश्मीर में अशांति बढ़ने की आशंका बन गई है। तालिबान के अलग-अलग गुटों पर पाकिस्तान के असर को लेकर भारत आशंकित है।
क्या कहते हैं जानकार
आतंकवाद के मुद्दे पर देखना होगा कि भारत और अमेरिका अलग-अलग गुटों को लेकर परेशान हैं। भारत के लिए ज्यादा खतरा लश्कर, जैश और आइएम से है। दूसरी ओर, अमेरिका ने अल कायदा, हक्कानी नेटवर्क, आइएस पर ध्यान लगा रखा है। अफगानिस्तान से सभी गुट जुड़ते हैं।
- भास्वती मुखर्जी, पूर्व राजनयिक
अफगानिस्तान में योगदान देने के मामले में भारत के पास ज्यादा संभावनाएं हैं, क्योंकि अमेरिका की तरह वह भी अफगानिस्तान में सुरक्षा, राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक विकास और क्षेत्रीय अखंडता बेहतर करना चाहता है ताकि अफगानिस्तान को वैश्विक जिहादियों से दूर
रखा जा सके।
- कंवल सिब्बल, पूर्व विदेश सचिव