पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कभी स्वामी करपात्री महाराज को खूब मानती थीं। पर उनका मान-सम्मान करने के बाद भी वह एक बार उनसे किए अपने वादे से मुकर गईं। नतीजतन स्वामी को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा। नौबत साधु-संतों और गोरक्षकों पर फायरिंग तक की आई, जिसके बाद संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने गांधी को शाप दे दिया था।

किस्सा 1965 के आसपास का है। देश में गोहत्या बंद कराने और गोरक्षा पर सख्त कानून लाने के लिए विशाल आंदोलन हुआ था। अगले साल संत इसी मांग को लेकर देश की राजधानी नई दिल्ली कूच कर गए थे। यह वह दौर था, जब गांधी करपात्री महाराज का खासा सम्मान करती थीं। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि वह चुनावी दौर था। बताया जाता है कि महाराज से इंदिरा ने वादा किया था कि चुनाव जीतीं तो सारे गोकशी के अड्डों (अंग्रेजी हुकुमत के दौर से चलने वाले) को बंद करा देंगी। बाद में वह चुनाव तो जीत गईं, पर अपने वादे को लेकर स्पष्ट नहीं नजर आईं।

तब करपात्री महाराज को सड़क पर आना पड़ा। लाखों साधु-संत गोहत्या और गोरक्षा के मुद्दे पर कानून की मांग को लेकर संसद के बाहर धरने पर आ गए। तारीख थी- सात नवंबर, 1966। करपात्री महाराज के तब साथ रामचंद्र वीर भी थे, जिन्होंने आमरण अनशन का ऐलान किया था। करपात्री महाराज व अन्य के नेतृत्व में जब संत संसद कूच कर रहे थे, तब भारी संख्या में महिलाएं भी थीं। संसद के बाहर हरियाणा के करनाल ज़िले से जनसंघ के तत्कालीन सांसद स्वामी रामेश्वरानंद संतों से बोले कि संसद में घुसें और सांसदों को पकड़कर बाहर ले आएं, तभी गोहत्या रोकने से जुड़ा कानून बनेगा।

बताया जाता है कि इंदिरा ने इस पूरे घटनाक्रम के बाद फायरिंग के आदेश दे दिए थे। अंधाधुंध गोलियां चलीं, जिसमें सैकड़ों साधु-संत और गोरक्षकों की जान गई थी। राजधानी में कर्फ्यू लगाने तक की नौबत आ गई थी। कई संत जेलों में बंद कर दिए गए थे। तब गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा थे, जिन्होंने मामले से क्षुब्ध होकर इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने खुद को इसके लिए जिम्मेदार बताया था।

कहा जाता है कि करपात्री ने तब इंदिरा को शाप दे दिया था कि जैसे उन्होंने साधुओं पर फायरिंग कराई है, ठीक ऐसा ही उनका भी हाल होगा। यह शाप उन्होंने संसद भवन के बाहर संतों-साधुओं की लाशें उठाते हुए दिया था। वह इस घटना के बाद अवसाद में चले गए थे।

गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ में इस घटना के बारे में छपा था। पत्र‍िका में करपात्री महाराज के हवाले से इंद‍िरा गांधी के ल‍िए छपा था- मुझे इस बात का दुख नहीं कि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या कराई, बल्कि तूने गोहत्या करने वालों को छूट देकर पाप किया है। यह माफी के लायक नहीं है। गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा। 

स्वामी करपात्री महाराज का नाम हरनारायण ओझा था। दीक्षा के बाद उनका नाम ‘हरीन्द्रनाथ सरस्वती’ पड़ा, लेक‍िन वह मशहूर हुए ‘करपात्री’ नाम से ही। वह अपनी अंजुली का इस्‍तेमाल खाने-पीने के ल‍िए करते थे, इसल‍िए वह ‘करपात्री’ के नाम से प्रस‍िद्ध हुए। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य करपात्री को ‘धर्मसम्राट’ की उपाधि भी दी गई थी।

‘सनातन धर्म के सूर्य थे करपात्री महाराज’: युवा चेतना ने करपात्री महाराज की याद में गुरुवार को एक कार्यक्रम कराया, जिसमें स्वामी सर्वेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि करपात्री महाराज सनातन धर्म के सूर्य थे। उन्होंने जीवन भर धर्म की रक्षा के लिए काम किया। उनके दिखाए रास्ते पर चलकर ही राष्ट्र कल्याण संभव है। वहीं, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्य ज्योतिका कालरा बोलीं कि वह देश को विश्वगुरु बनाना चाहते थे। हमें उनके अधूरे सपनों को पूरा करना होगा।

काशी से दिल्ली तक ट्रेन चलाने की मांगः युवा चेतना के राष्‍ट्रीय संयोजक रोह‍ित कुमार स‍िंह की ओर से मांग उठाई गई कि स्वामी करपात्री की याद में मोदी सरकार को वाराणसी से नई दिल्ली तक धर्मसम्राट एक्सप्रेस चलानी चाहिए। केंद्र इसके साथ उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी करे।  रोह‍ित ने कहा कि हम पिछले 10 साल से स्वामी करपात्री की स्मृति में ट्रेन और डाक टिकट के लिए प्रयास में लगे हैं। जब पीएम मोदी काशी के सांसद हैं, तब भी स्वामी करपात्री को सम्मान न मिलेगा तो कब मिलेगा? 

स्वामी अभिषेक ब्रह्मचारी ने कहा क‍ि करपात्री जी धर्म के अवतार थे। उन्‍होंने धर्मशासित राजनीतिक व्यवस्था हेतु पहल की थी। युवा वर्ग को स्वामी करपात्री जी के रास्ते पर चलना चाहिए। मुख्य अतिथि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्य ज्योतिका कालरा ने कहा क‍ि करपात्री जी भारत को विश्वगुरु बनाना चाहते थे। हमें उनके अधूरे सपनों को पूरा करना होगा।