तमिलनाडु सरकार ने राज्य में आरएसएस के मार्च को अनुमति दिए जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। राज्य सरकार ने शीर्ष न्यायालय में दायर अपनी याचिका में कहा है कि यह मार्च कानून व्यवस्था की समस्या पैदा करेगा। स्टालिन सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की।

मद्रास हाईकोर्ट ने आरएसएस को संशोधित तारीखों पर अपना मार्च निकालने की 10 फरवरी को अनुमति दी थी। अदालत ने कहा था कि प्रदर्शन स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है। अपनी ही सिंगल बेंच के चार नवंबर, 2022 के आदेश को निरस्त करते हुए हाईकोर्ट ने 22 सितंबर, 2022 के उस आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें मार्च निकालने और एक जनसभा आयोजित करने की अनुमति से संबंधित आरएसएस के अनुरोध पर तमिलनाडु पुलिस को विचार करने का निर्देश दिया गया था।

सिंगल बेंच ने इसे बंद जगह में आयोजित करने को कहा था

सिंगल बेंच के आदेश में प्रस्तावित राज्यव्यापी मार्च पर शर्तें लगाई गई थीं। इसे बंद जगह में आयोजित करने को कहा गया था। अदालत ने अपीलकर्ताओं को मार्च आयोजित करने के उद्देश्य से तीन अलग-अलग तिथियों के साथ राज्य के अधिकारियों से संपर्क करने को कहा था। राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वो इन तीन तिथियों में से चुनी गई एक तिथि पर मार्च आयोजित करने की अनुमति प्रदान करें।

हालांकि संघ का कहना है कि वो केवल अपनी एक्टिविटी बढ़ाने के लिए मार्च निकालने जा रही है। लेकिन स्टालिन सरकार को लगता है कि संघ के जरिये बीजेपी सूबे की राजनीति में पैठ करने की कोशिश में है। हालांकि स्टालिन की विरोधी पार्टियों अन्नाद्रमुक के साथ तालमेल कर बीजेपी चुनाव में उतर चुकी है। लेकिन वो कामयाबी हाथ नहीं लगी। गठबंधन को लेकर अब अन्नाद्रमुक के तेवर तीखे हैं तो बीजेपी अपना जनाधार बढ़ाने में लगी है। इसके लिए माना जा रहा है कि संघ को आगे किया जा रहा है। संघ के जरिये तमिलनाडु की राजनीति में परिवर्तन की कोशिश की जा रही है। अभी तक वहां द्रमुक और अन्नाद्रमुक ही सत्ता में आते रहे हैं।