स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने चारा घोटाला मामले में 35 दोषियों को शुक्रवार को चार साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। दोषियों पर 75 हजार रुपये से एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना भी लगाया गया। यह मामला 1990 से 1995 के बीच बिहार के डोरंडा कोषागार से 36.59 करोड़ रुपये की फर्जी तरीके से निकासी से जुड़ा है। सीबीआई के प्रासीक्यूटर रविशंकर ने कहा कि स्पेशल सीबीआई जज विशाल श्रीवास्तव ने उन 35 दोषियों को सजा सुनाई, जो कभी बिहार के पशुपालन विभाग अधिकारी और ठेकेदार थे।
अदालत ने मंगलवार को उन्हें दोषी करार दिया था। अधिकारियों ने कहा कि मामले में विभाग के पूर्व अधिकारी गौरी शंकर प्रसाद पर एक करोड़ रुपये, शरद कुमार पर 40.4 लाख रुपये और बिजयेश्वरी प्रसाद सिन्हा पर 36.1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया।
28 अगस्त को मामले के 124 डोरंडा, देवघर, दुमका और चाईबासा जैसे कोषागारों से फर्जी तरीके से करोड़ों रुपये निकाले जाने का घोटाला 1990 के दशक में उजागर हुआ था। तब झारखंड बिहार का हिस्सा था। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को भी इस मामले में दोषी ठहराया गया था। फिलहाल वह खराब स्वास्थ्य के आधार पर जमानत पर हैं।
लाखों से शुरू होकर 1 हजार करोड़ के करीब पहुंच चुका है घोटाला
बिहार के चारा घोटाले को पशुपालन घोटाला कहा जाना चाहिए, क्योंकि मामला सिर्फ चारे का नहीं है,यह सारा घपला बिहार सरकार के खजाने से गलत ढंग से पैसे निकालने का है। कई वर्षों में करोड़ों की रकम पशुपालन विभाग के अधिकारियों और ठेकेदारों ने राजनीतिक मिली-भगत के साथ निकाली है। ये सिलसिला वर्षों से चल रहा था।
शुरुआत छोटे-मोटे मामलों से हुई लेकिन बात बढ़ते-बढ़ते तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तक जा पहुंची। लाखों से शुरू होकर मामला अब 900 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा है। पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि घपला कितनी रकम का है, क्योंकि पशुपालन विभाग को अपना हिसाब रखने में हमेशा से परेशानी थी। पैसे का हेरफेर वहां आम बात थी। हिस्सा ऊपर तक बंटता था।