दुनिया भर में सोशल मीडिया मंचों का उपयोग लगातार बढ़ रहा है, लेकिन इसके असर से उपजे हालात चिंता भी बढ़ा रहे हैं। हालांकि दरवाजे पर पहुंच चुके इस जोखिम को लेकर सचेत रहने की बातें भी खूब होती रही हैं, लेकिन इसके बढ़ते दायरे की जटिलता और ज्यादा गहराती जा रही है। एक ओर इसने सूचना तक पहुंच का दायरा बढ़ाया है, वहीं दूसरी ओर नई चुनौतियां भी पेश की हैं, जो अब सीधे हमारे समाज पर प्रभाव डाल रही हैं। आज के तकनीकी दौर में लगभग हर हाथ में स्मार्टफोन है। अगर परिवार में पांच सदस्य हैं, तो घर में तीन या चार स्मार्टफोन भी होते हैं।
इस बात की भी पूरी संभावना है कि स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लगभग सभी लोगों का खाता किसी न किसी सोशल वेबसाइट पर होगा ही, जहां वे घंटों अपना समय बिताते हैं। जिस सोशल मीडिया को अभिव्यक्ति, जानकारी साझा करने और नवाचार का अहम मंच समझा गया, वह आज कई तरह की परेशानियों की वजह भी बन रहा है।
सोशल मीडिया के जरिए अफवाह फैला कर सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने और सकारात्मक सोच को संकीर्ण करने के प्रयास किए जा रहे हैं। सामाजिक और धार्मिक स्वार्थ के साथ राजनीतिक स्वार्थ के लिए भी इस मंच पर भ्रामक जानकारियां परोसी जा रही हैं। तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। अलग-अलग मंचों के लगातार उपयोग और उसमें खोए रहने की वजह से लोगों के सोचने का दायरा संकुचित होता जा रहा है। युवा और वरिष्ठ नागरिक ही नहीं, बल्कि बच्चे भी अब सोशल मीडिया की लत के शिकार हो रहे हैं। सच यह है कि आज की दुनिया में सोशल मीडिया हमारी संस्कृति, अर्थव्यवस्था और लोगों के समग्र दृष्टिकोण को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
लोगों के विचारों का आदान-प्रदान करने वाला है मंच
इसमें दोराय नहीं कि यह मंच लोगों को विचारों का आदान-प्रदान करने, सलाह लेने और मार्गदर्शन के लिए एक साथ जोड़ता है। सोशल मीडिया ने संचार बाधाओं को हटा दिया है और सभी के लिए अपनी बात रखने का द्वार खोल दिया है। इसके जरिए अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक आसानी से पहुंचाना संभव है। वाट्सएप और इस जैसे कुछ मंच संवाद का माध्यम बन गए हैं। वर्ष 2016 के बाद से सोशल मीडिया के उपयोग में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है और इसने दुनिया भर के लाखों उपयोगकर्ताओं को एक साथ जोड़ा है।
आज यह माध्यम हमारे जीवन में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है, लेकिन इसके अत्यधिक उपयोग की वजह से इसकी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। समाज पर सोशल मीडिया के प्रभावों के बारे में कई तर्क-वितर्क प्रस्तुत किए गए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह एक वरदान है, जबकि कुछ लोग महसूस करते हैं कि यह एक अभिशाप है। आज हर उम्र के लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। इसके कुछ फायदे हैं, तो नुकसान भी हैं। यह मंच एक तरह से दूर रह रहे लोगों को एक दूसरे के पास जरूर ले आया है, लेकिन करीबियों को दूर कर दिया है। युवाओं पर तो ‘सोशल नेटवर्किंग’ का नशा-सा हो गया है। विविध मंचों पर दिन में कई बार अपनी टिप्पणियां या तस्वीरें देखना, घंटों तक दोस्तों के साथ बातें करना जैसी आदतों ने युवा पीढ़ी को काफी हद तक प्रभावित किया है। रोजाना बहुत देर तक फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स जैसे मंचों पर समय बिताने से न केवल उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है, बल्कि कुछ नया करने की उनकी रचनात्मक क्षमता भी धीरे-धीरे कम या खत्म हो रही है। यह ज्यादा चिंताजनक पहलू है।
सोशल मीडिया के प्रभाव से आजकल पैसे कमाना भी हो गया है सामान्य
आधुनिक तकनीक के प्रवाह में इस माध्यम का अतिशय उपयोग युवाओं के उर्वर वैचारिक पक्ष को कुंद करने का जरिया बन गया है। जब युवा सोशल मीडिया पर अनुचित सामग्री देखते हैं, तो उन्हें अवसाद, चिंता, निराशा, और आत्मविश्वास की कमी जैसी मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। इस तरह की सामग्री से युवाओं के सामाजिक स्तर और व्यक्तित्व पर भी असर पड़ सकता है। इसे जटिल बनाने की पृष्ठभूमि भी है। सोशल मीडिया के प्रभाव से आजकल पैसे कमाना भी सामान्य हो गया है। पढ़ाई और मेहनत के महत्त्व को समझने की बजाय युवा आसान रास्ते की तलाश में हैं। आज की युवा पीढ़ी का दोष यह नहीं है कि वे गलत दिशा में जा रहे हैं, असल समस्या है कि सोशल मीडिया ने उनकी सोच पर गहरी छाप छोड़ी है। यह प्रवृत्ति न केवल व्यक्तिगत रूप से उन्हें नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि देश के समग्र विकास को भी पीछे धकेल रही है।
ना कपड़ा, ना सैनिटरी पैड, ना सुरक्षित जगह, आपदा में औरतें बेबस; निजी जरूरतों की कमी सबसे बड़ी तकलीफ
हालांकि इंटरनेट के मंचों का उपयोग वास्तविकता से अलग भी हो सकता है। अधिकांश लोग सोशल मीडिया पर अपने जीवन की सफलताओं, खुशियों और उत्सवों को साझा करते हैं। यह आभासी दुनिया का निर्माण करता है, जो वास्तविक जीवन से अलग होती है। जब युवा इस तरह की सामग्री देखते हैं, तो उन्हें यह लगता है कि बाकी सभी लोग उनके मुकाबले बेहतर जीवन जी रहे हैं। वे अपने जीवन की तुलना इन आभासी छवियों से करने लगते हैं और यह समझ नहीं पाते कि जो वे देख रहे हैं, वह केवल जीवन के अच्छे हिस्से का प्रदर्शन है। यह असमानता की भावना उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से परेशान करती है, जिससे तनाव बढ़ता है। सोशल मीडिया ने भले ही लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम किया हो, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी व्यापक हैं।
हर कार्य के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव होते हैं
इस सबका परिणाम यह हो रहा है कि अब वास्तविक सामाजिक संबंधों की जगह आभासी संबंधों ने ले ली है। पहले जहां लोग अपने परिवार और मित्रों से व्यक्तिगत रूप से मिलते थे, अब उनकी बातचीत सोशल मीडिया मंचों तक सीमित हो गई है। युवा अब वास्तविक संबंधों को समय नहीं दे पा रहे हैं। वे आभासी दुनिया में इतने खो जाते हैं कि उनके पास अपने आसपास के लोगों के साथ वास्तविक जुड़ाव का समय नहीं रहता। यह भावनात्मक दूरी अकेलेपन और अवसाद का एक प्रमुख कारण बनती है।
यह सच है कि किसी भी चीज के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव होते हैं। सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को नया आयाम दिया है, आज हर व्यक्ति बिना किसी डर के सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचार रख सकता है और उसे हजारों लोगों तक पहुंचा सकता है। इससे हमारे समाज में कई बदलाव आए हैं, जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में देखे जा सकते हैं, लेकिन सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने इसे एक खतरनाक उपकरण के रूप में भी स्थापित कर दिया है, जो वास्तव में चिंता का विषय है। ऐसे में इसे नियंत्रित या इसका उपयोग कम करने की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही है।
इसके सामाजिक प्रभावों के मद्देनजर अब आवश्यक है कि निजता के अधिकार का उल्लंघन न हो और सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सके। इसके लिए खासकर युवाओं को जागरूक करने की जरूरत है, ताकि वे अनावश्यक रूप से आभासी दुनिया में खोए न रहें और वास्तविकता से रूबरू हों। वैसे भी सोशल मीडिया के फायदे तभी सही मायने में मिल सकते हैं, जब इसका उपयोग संतुलित और उद्देश्यपूर्ण तरीके से किया जाए।