महाराष्ट्र के ठाणे जिले के बोरीवली-पडघा गांव पर सुरक्षा एजेंसियों की पैनी नजर है। पिछले दो सालों में यहां एनआईए, ईडी, महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) और ठाणे की ग्रामीण पुलिस भी कई बार छापेमारी कर चुकी है। 2024 और 2025 में तो इस गांव में बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन चलाया गया था।
क्या है इस गांव की कहानी और क्यों यह सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर है, आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं।
बोरीवली-पडघा का इतिहास शिलाहारा राजवंश (7वीं-10वीं शताब्दी) से मिलता है। उस वक्त यह इलाका उत्तरी कोंकण प्रशासनिक क्षेत्र का हिस्सा था। 12वीं शताब्दी में जब अरब व्यापारी भिवंडी बंदरगाह पर पहुंचे तो यहीं बस गए और उन्होंने बोरीवली में एक बस्ती बसाई। बाद में यह बस्ती पडघा में ही मिल गई।
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83 प्रतिशत है मुस्लिम आबादी
यहां पर धीरे-धीरे आर्थिक रूप से मजबूत एक वर्ग उभरा। इनमें अधिकतर मुस्लिम समुदाय के लोग थे। मुल्ला, नाचन और खोट जैसे प्रमुख परिवार यहां जमींदार और लकड़ी व्यापारी बन गए। 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस इलाके में 5,780 लोग रहते हैं, जिनमें से 83 प्रतिशत मुस्लिम हैं।
यहां के लोग राजनीतिक रूप से भी सक्रिय हैं। आजादी के आंदोलन के दौरान गांव की मुस्लिम महिलाओं ने विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। बोरीवली के चौक पर ब्रिटिश सामानों को जलाया और इसमें सरोजिनी नायडू भी शामिल हुई थीं। इस गांव में वामपंथी कार्यकर्ताओं से लेकर इस्लामिक छात्र आंदोलन तक हुए।
2001 में केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए बैन से पहले स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की इस इलाके में मजबूत मौजूदगी थी।
साकिब नाचन को बताया मुख्य साजिशकर्ता
2002-03 में जब मुंबई में सिलसिलेवार बम धमाकों की जांच हुई तब यह गांव पहली बार सुरक्षा एजेंसियों की नजर में आया। तब यहां के पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था। पुलिस ने कहा कि इसी गांव का रहने वाला साकिब नाचन इस मामले में मुख्य साजिशकर्ता था। कुछ आरोपियों को दोषी ठहराया गया जबकि अन्य को बरी कर दिया गया। उसके बाद से यह गांव चर्चा में आ गया।
साकिब नाचन का जन्म एक कोंकणी मुस्लिम परिवार में हुआ था। उसके पिता का नाम अब्दुल हामिद नाचन था। साकिब पढ़ाई पूरी करने के बाद जमात-ए-इस्लामी हिंद के साथ जुड़ गया। 1980 में वह छात्र संगठन सिमी में शामिल हो गया और बाद में महाराष्ट्र इकाई का अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव भी बना।
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पाकिस्तान और अफगानिस्तान जाता था नाचन
1980 के दशक में खुफिया एजेंसियों ने आरोप लगाया कि नाचन लगातार पाकिस्तान और अफगानिस्तान जा रहा था और आतंकवादी समूहों के साथ भी उसके संबंध थे। 1992 में ही नाचन को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे घटाकर 10 साल कर दिया था।
सजा पूरी करने के बाद नाचन 2001 में अपने गांव लौट आया लेकिन जब 2002-03 में मुंबई बम धमाकों की जांच शुरू हुई तो नाचन फिर से जांच के दायरे में आ गया। मार्च, 2003 में उसकी गिरफ्तारी की कोशिश के दौरान पुलिस और यहां के लोगों के बीच झड़प हुई और तब नाचन ने सरेंडर कर दिया।
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दिल्ली के अस्पताल में हुई मौत
2017 में नाचन रिहा हो गया और गांव में रहने लगा लेकिन 2023 में एनआईए की जांच के दौरान आईएसआईएस से संबंधों के आरोप में उसका नाम फिर से सामने आया। उसे गिरफ्तार कर लिया गया और तिहाड़ जेल में डाल दिया। इस साल की शुरुआत में दिल्ली के एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी।
जांच एजेंसियों का कहना था कि नाचन और अन्य आरोपियों ने भारत के खिलाफ जंग छेड़ने के मकसद से हमले करने की योजना बनाई थी। एजेंसियों का मानना है कि सिमी की मौजूदगी के दौरान यहां बने वैचारिक और संगठनात्मक नेटवर्क पूरी तरह से खत्म नहीं हुए हैं।
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