Supreme Court Slams UP Govt: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यूपी सरकार को जमकर फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी के घर को आप कैसे गिरा सकते हैं। मामला प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य के घरों को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना ध्वस्त करने से जुड़ा था।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई। साथ ही कहा कि इस तरह का विध्वंस चौंकाने वाला और गलत संकेत देता है। पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया यह चौंकाने वाला और गलत संकेत देता है तथा इसमें सुधार की जरूरत है।

यूपी सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि संबंधित व्यक्तियों की संपत्ति को नोटिस देने के लिए वास्तव में एक आधार मौजूद है, तो पीठ ने कहा कि वह जानती है कि ऐसे अति तकनीकी आधारों से कैसे निपटना है।

जस्टिस ओका ने कहा कि आप घरों को ध्वस्त करने की इतनी कठोर कार्रवाई कर रहे हैं और उनमें से एक वकील है और दूसरा प्रोफेसर है। हम जानते हैं कि इस तरह के अति तकनीकी तर्कों से कैसे निपटना है। आखिरकार अनुच्छेद 21 और आश्रय का अधिकार जैसी कोई चीज है!

बेंच पांच व्यक्तियों – अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद, दो विधवाओं और एक अन्य व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनके घर ध्वस्त कर दिए गए थे। सभी घर एक ही भूखंड पर थे।

इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा ध्वस्तीकरण को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज करने के बाद याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि उन्हें शनिवार रात को नोटिस दिए गए थे और ध्वस्तीकरण मार्च 2021 में रविवार को किया गया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिमन्यु भंडारी ने कहा कि सरकार ने याचिकाकर्ताओं की जमीन को गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद की जमीन समझ लिया, जो 2023 में पुलिस मुठभेड़ में मारा जाएगा। भंडारी ने कहा कि अतीक अहमद नाम का एक गैंगस्टर था और उसने हमारी जमीन को अपनी जमीन समझ लिया। उन्हें (राज्य को) अपनी गलती स्वीकार कर लेनी चाहिए।

अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को विध्वंस नोटिस का जवाब देने के लिए उचित समय दिया गया था। लेकिन न्यायमूर्ति ओका इससे असहमत थे।

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जस्टिस ओका ने कहा कि नोटिस इस तरह क्यों चिपकाया गया? कूरियर से क्यों नहीं भेजा गया? कोई भी इस तरह नोटिस देगा और तोड़फोड़ करेगा। यह तोड़फोड़ का एक अत्याचारपूर्ण मामला है। पीठ ने कहा कि पृष्ठ 182 पर जाएं…आप कहते हैं कि डाक से भेजने की कोई प्रक्रिया नहीं है…यहां नोटिस डाक से भेजा गया है। इसे देखें।

एजी ने कहा कि नोटिस देने के समय वह व्यक्ति वहां था या नहीं, यह एक विवादित तथ्य है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि मैं विध्वंस का बचाव नहीं कर रहा हूं, लेकिन उच्च न्यायालय को इस पर विचार करने दीजिए।

पीठ ने कहा कि बिल्कुल नहीं। दोबारा हाई कोर्ट नहीं जाना चाहिए। तब मामला विलंबित हो जाएगा। कोर्ट ने कहा कि ध्वस्त किये गये ढांचों का पुनर्निर्माण करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस ढांचे का पुनर्निर्माण करना होगा। यदि आप हलफनामा दाखिल करके विरोध करना चाहते हैं तो ठीक है, अन्यथा दूसरा कम शर्मनाक तरीका यह होगा कि उन्हें निर्माण करने दिया जाए और फिर कानून के अनुसार उन्हें नोटिस दिया जाए।

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